डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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सम-सामायिक चिंतन….
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, जहाँ समस्यायों का भण्डार है। कोई भी नियम- कानून बनाने में सरकारों को पसीना आ जाता है,कारण ‘पिंडे पिंडे मतिर भिन्ना’ क्योंकि यहाँ जनतंत्र है और सबको बोलने की स्वतंत्रता के साथ स्वच्छंदता है और उसके बाद न्यायालीन सुव्यवस्था का होना। अभी कुछ दिनों में बाल की खाल निकालने वाले आंदोलन या न्यायालय जाएंगे। विधान सभाओं में बहुमत होने के कारण बिल पारित हो भी जाए तो दिल्ली की केन्द्र सरकार को अपना भविष्य देखना पड़ेगा।
आज आबादी नियंत्रण बहुत आवश्यक है,इसको समग्र परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए-विश्व,देश,प्रदेश, व्यक्तिगत परिवार। आबादी बढ़ाना कोई अपराध नहीं है,पर आने वाली संतति के भरण पोषण की क्या व्यवस्था और सुविधा होगी। आबादी के कारण अधोसंरचना में ही हमारा पूरा आर्थिक ढांचा चरमरा जाता है। यदि हम व्यक्तिगत बात करें तो सामान्यजन का अधिकांश धन चिकित्सा-शिक्षा में जाता है। उसके बाद शान-शौकत में। यदि किसी की आमदनी का जरिया संतोषजनक है,तो ठीक है वरना वह एक संतान के बाद सोचता है दूसरी संतान के लिए। कारण,पालन-पोषण के बाद शिक्षा में हजारों का शुल्क,किताबें अलग। आजकल ऑनलाइन शिक्षा के कारण लेपटॉप,आईपेड, मोबाइल अनिवार्य हो चुके हैं। इधर आजकल त्योहारी अवसर के सामान एक बीमारी के साथ दो बीमारी मुफ्त में मिल रही है। बजट का अधिवकंश पैसा परिवार में लग जाता है।
अब आती है समस्या देश,प्रदेश स्तर की। रोटी, कपड़ा और मकान एवं इसके बाद नौकरी-व्यापार। इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होना, जैसे-सड़क निर्माण,भवन निर्माण आदि में रेत उत्खनन,जंगलों की कटाई,पानी की कमी होना,
अस्पताल-विद्यालय-महाविद्यालयों में प्रवेश की समस्या,उसके बाद न्यायालय,यात्राएं उनमें भीड़, कारों में भीड़,रखरखाव भी होने से स्थानाभाव होता है़। मांग और उत्पादन में अंतर होने से पूर्ति की कमी। उससे मँहगाई का होना स्वभाविक है। इसके अलावा देश में समस्यों का अम्बार लगा हुआ है। राजनीतिक उथल-पुथल के साथ सभी दल एक-दूसरे के दुश्मन और टांग खींचने में आगे,यानि विरोध करना उनका अधिकार है।
आबादी नियंत्रण के लिए कानून बना देना काफी नहीं होगा,जब तक कि व्यक्तिगत चेतना न जाग्रत हो,क्योंकि हमारे देश में कानून तोड़ना पहले जानते हैं। रचनात्मक सोच न होने से विकास नहीं हो पा रहा है। कुछ जातिगत पहलू होने से विरोध होना स्वाभाविक है। चीन में भी नियम बनने के बाद आज वहां आबादी असंतुलन होने से फिर से दो बच्चों का अधिकार देना पड़ा। ये मसले २ राज्यों के नहीं,पूरे भारत का है।समस्या यह भी कि, हमारे यहाँ कोई भी कानून प्रजातंत्र में कठिन होता है। यहाँ राजशाही और हिटलरशाही तंत्र न होने से परेशानी होती है। दूसरी बात योग्य दंपत्ति को २ बच्चों का अवसर तो देना होगा। यह आवर्ती होगा और वर्तमान में मृत्यु दर कम होने से आबादी वृद्धि होना स्वाभाविक है।
प्रजातंत्र में ऐसे कानून बनाना खतरे से खाली नहीं होता। वर्ष १९७५ में ‘परिवार नियोजन’ कार्यक्रम के कारण सरकार गिर गई थी। नियमों का पालन कायदे से हो, जबरदस्ती होने से अव्यवस्था होने के मौके बढ़ने लगते हैं।
स्वर्णिम भविष्य के लिए आबादी नियमन किया जाना जरुरी है। कारण संसाधन सीमित होने से हर वस्तु की तंगी होना लाज़िमी है। वर्तमान पीढ़ी वैसे ही कष्टमय है, इसलिए आगामी पीढ़ी को संतति नियमन का पालन करना होगा,तभी संतान सुखी और आप स्वस्थ रह पाएंगे।
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।