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स्वर-माधुर्य की साम्राज्ञी का मौन होना

ललित गर्ग
दिल्ली

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लता मंगेशकर देह से विदेह हो गई है। गायन के क्षेत्र में अब वे एक याद बन चुकी हैं। उनका निधन स्वरों की दुनिया में एक गहन सन्नाटा है,वे ईश्वर का साक्षात स्वरूप थी,उनके स्वरों में माँ सरस्वती विराजती थी,उनके स्वरों में भारत की आत्मा बसी थी। उनका निधन एक अपूरणीय क्षति है। उनकी आवाज दुनिया के किसी हिस्से के भूगोल में कैद न होकर ब्रह्माण्डव्यापी बन चुकी थी। हम कह सकते थे कि हमारे पास एक चाँद है,एक सूरज है तो एक लता मंगेशकर भी है,लेकिन अब वे नहीं है सोचकर ही सिहरन होती है। सचमुच अद्भुत,अकल्पित, आश्चर्यकारी था उनका रचना,स्वर एवं संगीत संसार। इसे चमत्कार नहीं माना जा सकता,इसे आवाज का कोई जादू भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यह हुनर,शोहरत एवं प्रसिद्धि एक लगातार संघर्ष एवं साधना की निष्पत्ति थी। एक लंबी यात्रा है संघर्ष से सफलता की,नन्हीं लता से भारत रत्न स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर बनने तक की। संगीत की उच्चतम परंपराओं,संस्कारों एवं मूल्यों से प्रतिबद्ध एक महान् व्यक्तित्व है-लता मंगेशकर। निश्चित ही उनके निधन से भारत का स्वर संसार थम गया।
लता मंगेशकर एक महान जीवन की अमर गाथा है। उनका जीवन अथाह ऊर्जा से संचालित एवं स्वप्रकाशी था। वह एक ऐसा प्रकाशपुंज थी, जिससे निकलने वाली एक-एक रश्मि का संस्पर्श जड़ में चेतना का संचार करता रहा है। वो स्वर है, ईश्वर है,यह केवल संगीत की किताबों में लिखी जाने वाली उक्ति नहीं,यह संगीत का सार है और इसी संगीत एवं स्वर-माधुर्य की साम्राज्ञी लता मंगेशकर का मौन में विलीन हो जाना दुखद है। गीत,संगीत,गायन और आवाज की जादूगरी की जब भी चर्चा होगी,सहज और बरबस ही एक नाम लोगों के होंठों पर आता रहेगा-लता मंगेशकर। लता हमेशा से ही ईश्वर द्वारा दी गई सुरीली आवाज, जानदार अभिव्यक्ति व बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय एवं विलक्षण क्षमता का उदाहरण रहीं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द ही पहचान मिल गई थी। शुरुआत अवश्य अभिनय से हुई किंतु आपकी दिलचस्पी तो संगीत में ही थी। इस शुभ्रवसना सरस्वती के विग्रह में एक दृढ़ निश्चयी, गहन अध्यवसायी,पुरुषार्थी और संवेदनशील संगीत-साधिका-आत्मा निवास करती है। उनकी संगीता-साधना,वैचारिक उदात्तता,ज्ञान की अगाधता,आत्मा की पवित्रता,सृजन-धर्मिता, अप्रमत्तता और विनम्रता उन्हें विशिष्ट श्रेणी में स्थापित करती है।
लताजी का लक्ष्य अभिनय की दुनिया नहीं था,वे संगीत की दुनिया में जाना चाहती थी। सौभाग्य से उन्हें पितृतुल्य संरक्षण और स्नेह देनेवाले गुरु खां साहब अमान अली मिल गए। उन्होंने डेढ़ साल तक लताजी को तालीम दी। तब लताजी ने हिन्दी-उर्दू का अभ्यास कर उच्चारण-दोष दूर करने का प्रयास शुरू कर दिया। इस श्रम-साधना ने ही उन्हें यशस्वी गायिका बनाकर सफलता के सुमेरु पर पहुंचाया। हैदर साहब ने उन्हें फिल्म ‘मजबूर’ के लिए पार्श्व गायिका के रूप में लिया। ‘मजबूर’ के गाने बड़े लोकप्रिय हुए और यहीं से लताजी का भाग्योदय शुरू हुआ। एक गुलाम हैदर ही क्या,१९४७ से २०२१ तक शायद एक भी ऐसा संगीत-निर्देशक नहीं होगा,जिसने लता से कोई न कोई गीत गवाकर अपने-आपको धन्य न किया हो।
आपने उस समय के सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया। अनिल विश्वास,शंकर-जयकिशन, एस.डी.बर्मन,आर.डी.बर्मन इत्यादि सभी संगीतकारों ने आपकी प्रतिभा का लोहा माना। लताजी ने दो आँखें बारह हाथ,दो बीघा ज़मीन, मुगल-ए-आजम आदि महान फिल्मों में गाने गाए हैं। आपने ‘महल’,’बरसात’ आदि फिल्मों में अपनी आवाज के जादू से लोकप्रियता में चार चाँद लगाए।
सात दशक की उनकी स्वर यात्रा में उनकी व्यक्तिगत ख्याति और लता की एक सिद्धि और भी थी-जिसकी भाषा और उच्चारण की खिल्ली उड़ाई गई थी,एक दिन सभी भाषाओं पर उनका प्रभुत्व स्थापित हो गया। लोग उनसे उच्चारण सीखने लगे। फिल्मी गीतों के अतिरिक्त गैर फिल्मी गीतों और भजनों की भी रिकार्डिंग होती रही। चीनी आक्रमण के समय पंडित प्रदीप के अमर गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी’ गाने के लिए लताजी को दिल्ली बुलवाया गया था। यह गीत सुनकर नेहरूजी रो पड़े थे। तो इतनी बड़ी मांग की आपूर्ति लता अकेले कैसे कर सकती थीं ?
लताजी बहुत ही सादगीप्रिय एवं सरल स्वभाव की रहीं। इतनी बड़ी कीर्ति और ऐश्वर्य के अभिमान का अहंकार उनमें कभी नहीं देखा गया।
गीत और संगीत का प्रवाह थमा नहीं है,कभी थमेगा भी नहीं। नादब्रह्म अभी निनादित है। गायक-गायिकाओं की लंबी कतारें आगे-पीछे होती रहेंगी। शिखर को छूने के प्रयत्न होते रहेंगे,किंतु लताजी जिस शिखर पर पहुंचती थी,वहां तक पहुंचने के सपने देखना भी बड़ी बात है। सृष्टि के गहन शून्य में शिव के डमरू से निकला नाद,प्रथम स्वर,प्रथम सूत्र और जगत में जीवंत हो उठा संगीत का संसार। संपूर्ण जगत नाचने लगा एक स्वर,एक लय,एक ताल में बंधकर। किसी ने इसे समाधि कहा और किसी ने मोक्ष,लेकिन साधक के लिए यह शांति है, आनंद है। अपूर्व,आध्यात्मिक शांति। अक्षरों में इसकी खोज व्यर्थ है। इसे समझने के लिए स्वरों को साथी बनाना पड़ता है और लता के स्वर तो सरस्वती के कंठ थे। लता की स्वर की संगत को किसी आध्यात्मिक समागम से कम नहीं आंका जा सकता। जिन्होंने लता को नहीं सुना तो कभी नहीं जान पाएंगे कि उन्होंने क्या खो दिया।
भारत रत्न लता मंगेशकर,भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका,जिनका ८ दशकों का कार्यकाल विलक्षण एवं आश्चर्यकारी उपलब्धियों से भरा पड़ा है।
उनकी आवाज की दीवानी पूरी दुनिया है। उनकी आवाज को लेकर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी कह दिया कि इतनी सुरीली आवाज न कभी थी और न कभी होगी। भारत की ‘स्वर कोकिला’ लता मंगेशकर की आवाज सुनकर कभी किसी की आँखों में आँसू आए,तो कभी सीमा पर खड़े जवानों को हौंसला मिला। वे न केवल भारत,बल्कि दुनिया के संगीत का गौरव एवं पहचान है,जो अब सदा के लिए मौन हो गई है।

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