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हमारी जान है हिंदी

अवधेश कुमार ‘आशुतोष’
खगड़िया (बिहार)
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(रचना शिल्प:१२२ १२२२ १२२२ १२२२)
हमारी शान है हिंदी,हमारी जान है हिंदी।
हमारे देश की यारों,सदा पहचान है हिंदी।

जिसे दिनकर,रहीमा,सूर,ने सिर पर सदा रक्खा,
वहीं तुलसी,कभी मीरा,कभी रसखान है हिंदी।

हजारों नाम हैं जिनने किया है होम जीवन को,
हमें बच्चन,कबीरा,मैथिली,पर मान है हिंदी।

नहीं तुम जानते हरिऔध को,अज्ञेय,कमलेश्वर,
हजारी को न जाने जो वही नादान है हिंदी।

निराला,शुक्ल हो या गुप्त,जयशंकर,अहो मुंशी,
इन्होंने दी अलग तुमको सदा पहचान है,हिंदी।

करें हम वीर का वंदन,करें हम वीर का चंदन,
हमें ऐसे सितारों पर सदा अभिमान है हिन्दी।

सदा इनकी बदौलत ही रहोगी देश में जिंदा,
सभी कविगण तुम्हारी ही असल में जान है हिंदी।

नहीं मुझमें अधिक क्षमता,करूँ क्या मातु मैं सेवा,
लिखूं दो-चार बस पुस्तक यही अरमान है हिंदी॥

परिचय-अवधेश कुमार का साहित्यिक उपनाम-आशुतोष है। जन्म तारीख २० अक्टूबर १९६५ और जन्म स्थान- खगरिया है। आप वर्तमान में खगड़िया (जमशेदपुर) में निवासरत हैं। हिंदी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले आशुतोष जी का राज्य-बिहार-झारखंड है। शिक्षा असैनिक अभियंत्रण में बी. टेक. एवं कार्यक्षेत्र-लेखन है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेते रहते हैं। लेखन विधा-पद्य(कुंडलिया,दोहा,मुक्त कविता) है। इनकी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें-कस्तूरी कुंडल बसे(कुंडलिया) तथा मन मंदिर कान्हा बसे(दोहा)है। कई रचनाओं का प्रकाशन विविध पत्र- पत्रिकाओं में हुआ है। राजभाषा हिंदी की ओर से ‘कस्तूरी कुंडल बसे’ पुस्तक को अनुदान मिलना सम्मान है तो रेणु पुरस्कार और रजत पुरस्कार से भी सम्मानित हुए हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-हिंदी की साहित्यिक पुस्तकें हैं। विशेषज्ञता-छंद बद्ध रचना (विशेषकर कुंडलिया)में है।