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हर इक लम्हा याद आया

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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साथ तुम्हारे जो गुज़रा वो वक्त पुराना याद आया,
जीवन के दुष्कर लम्हों में साथ निभाना याद आया।

देख रहा धुँधली आँखों से गये समय की तस्वीरें,
वो घूँघट की आड़ लिये तेरा मुस्काना याद आया।

सोच में डूबे-डूबे जब‌ भी आँख मेरी भर आती थी,
चुहल भरी बातों से वो मुझको बहलाना याद आया।

उम्र बढ़ी तो साथ उमर के नींद भी मानो रूठ गयी,
बच्चों जैसे थपकी देकर मुझे सुलाना याद आया।

जाने किन भावों में बह कर रो पड़ता था मैं अक्सर,
हृदय लगा कर मुझको तेरा सर सहलाना याद आया।

साँसों का अनमोल खजाना मुझ पर सारा वार दिया,
सपनीली आँखों से मुझको तकते रहना याद आया।

कहती रही हमेशा मुझसे साथ निभाऊँगी‌ हरदम,
इस पड़ाव में मुझको उसका छोड़ के जाना याद आया।

आज अकेला बैठा कबसे याद तुम्हीं को करता हूँ।
तेरे साथ बिताया था वो हर इक लम्हा याद आया॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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