कुल पृष्ठ दर्शन : 171

You are currently viewing हिंदीभाषी प्रान्त एक हो जाएं तो कठिन काम नहीं

हिंदीभाषी प्रान्त एक हो जाएं तो कठिन काम नहीं

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*****************************************

भारत की आत्मा ‘हिंदी’ व हमारी दिनचर्या….

आप जितना परछाई पकड़ने का प्रयास करते हैं,वह बढ़ती जाती है और आप स्थिर हो जाएं तो वह पकड़ में आ जाती है। ऐसे ही हिंदी दिवस पर हिंदी की बात एक औपचारिकता होती है। आज हिंदी का विकास,लेखन और प्रचलन कागजों में बहुत है,पर व्यवहारिक धरातल पर कोसों दूर है। जब तक किसी भी भाषा,जाति,धर्म,चिकित्सा को राज्याश्रय प्राप्त नहीं होता,तब तक विकास नहीं होता है। आज भी केन्द्र सरकार कोई प्रयत्नशील नहीं है। कारण,भारत एक बहुविविधताओं का देश है। यहाँ हर प्रान्तवासी अपनी भाषा पर गुमान करता है,जो स्वाभाविक और लाज़िमी है,पर मानसिक क्षुद्रता के कारण पूर्ण परिप्रेक्ष्य में सोच अभी तक विकसित नहीं हो पाई। प्रत्यक्ष में विरोध पर परोक्ष में उसके प्रति भक्ति जैसे सिनेमा,फ़िल्मी गाने,साहित्य लोकप्रियता के लिए हिंदी का अवलम्बन लेते हैं।
आज जितनी अधिक शक्ति हिन्दीकरण के लिए उपयोग की जाती है,उससे अधिक शक्ति विरोध के लिए।
हमारे देश में कोई राष्ट्र भाषा नहीं,कोई राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा नहीं,किसी प्रकार का आपसी सहयोग नहीं। भाषा से कोई विरोध नहीं,पर हिंदी की कोई पूर्ण स्वीकारता नहीं,ऐसा क्यों ? हम लोग बहुत बढ़-चढ़ कर बात करते हैं,पर नागरिक अपनी संतानों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने के लिए आतुर रहते हैं,क्योकि आज सम्पर्क भाषा अंग्रेजी है। बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि,जहाँ से हिंदी की बुनियाद बनती है,उसका स्थान शून्य है। यानी प्राथमिक शालाओं की स्थिति विशेषकर मध्यप्रदेश में बहुत दयनीय है।
स्नातक,परा स्नातक और शोध का कार्य भी अंग्रेजी में है। सरकारी आदेश-अनुदेश सब अंग्रेजी भाषा में,उच्चतम और उच्च न्यायालय आज भी अंग्रेजी भाषा पर निर्भर है। स्थानीय भाषा का कोई महत्व नहीं,पर प्रांतीय भाषा दक्षिण के राज्य चाहते हैं।
जब एक सांसद के कहने पर उच्च न्यायालय केन्द्र सरकार को यह व्यवस्था दे कि अंग्रेजी भाषा के पत्र का उत्तर अंग्रेजी में ही दिया जाए,हिंदी में नहीं तो हम कैसे एक राष्ट्र के नागरिक हैं ? दक्षिण राज्य में सब हिंदी जानते,समझते और बोलते हैं। हिंदी फिल्मों के गाना,पिक्चर देखते हैं और उसका आनंद लेते हैं,पर हिंदी के पत्राचार से इतनी अधिक नफरत ऐसा क्यों ? क्या यह सोची समझी राजनीति हैं ? यदि हाँ,तो यह संकीर्ण मानसिकता का घोतक है।
विगत सौ बरस से देश हिंदी राष्ट्रभाषा का गौरव देखना चाहता है,या चाह रहा है,लेकिन घृणित राजनीति के कारण राष्ट्रभाषा का गौरव नहीं प्राप्त हो पा रहा है। सब अपनी-अपनी भाषा का विकास करें,पर जो बहुलता से बोलचाल में चलन में है, उसको उसकी प्रतिष्ठा के अनुरूप बैठने दें।
हिंदीभाषी हठधर्मिता नहीं करते,अन्यथा हिंदीभाषी प्रान्त एकजुट हो जाएं तो ऐसा कोई कठिन काम नहीं है। इस मामले में केन्द्र सरकार भीरुता का परिचय देती है,जो कदापि मान्य नहीं है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply