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हिंदी को अनिवार्यत: करने से ही होगा भला

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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१४ सितम्बर को एक बार फिर हम ‘हिंदी दिवस’ मनाने की परम्परागत कोशिश करेंगे,औऱ अगले ११ महीने के लिए भूल जाएंगे। प्रश्न यह है कि ‘हिंदी दिवस’ कब तक-कितनी बार हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित हुए बिना मनाते रहेंगे ? यूँ कहें कि आजादी के इतने साल बाद भी हिंदी भाषा उपेक्षित है,तो अनुचित नहीं होगा। सयुंक्त राष्ट्र में भी देश का गौरव बनी हिंदी को यह दर्जा सिर्फ केन्द्र सरकार द्वारा ही दिया जाना है। अटल फैसलों के लिए चर्चित मौजूदा भारत सरकार यह काम भी कर सकती है,जिससे देश के हर वासी को सम्मान का अनुभव होगा। सरकार के इस कड़े निर्णय के साथ ही आज जरूरत इस बात की है कि हिंदी की लोकप्रियता औऱ अधिक बढ़ाई जाए। इस भाषा को दर्जे के साथ ही साँस के रुप में आम जीवन में उतारना होगा। अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं के सामने हिंदी को तुच्छ बनाम अनपढ़ लोगों की भाषा समझने-कहने-बोलने की भाषाई मानसिकता का विसर्जन करना होगा। बरसों पहले जिस तरह सारे देवता हिंदी में ही पत्र व्यवहार,सभा संचालन औऱ संवाद रचते थे, उसी राह पर सरकार को चलना होगा। देवताओं की यह भाषा आम जनजीवन में तभी मीठी सरिता बन पाएगी। इसे हम तथा केन्द्र सहित राज्य सरकारें जब तक महत्वपूर्ण काम मान कर तथा इसकी खूबियां जान कर गले का हार नहीं बनाएंगे,तब तक हिंदी भाषा की उन्नति अवरुद्ध ही रहेगी। हिंदीभाषा.कॉम जैसे प्रचारिक कदम उठाते हुए भाषाई संस्थाओं,साहित्यिक संगठनों को मिल कर साथ में आम आदमी को भी बेबाकी से अपनी किसी ना किसी कोशिश से सरकार पर दबाव बनाना होगा कि,सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा हिंदी को राष्ट्रभाषा का अधिकृत दर्जा दिया जाए। अमेरिका में भी दूसरे क्रम पर सर्वाधिक बोली जानी वाली हिंदी भाषा का दुर्भाग्य देखिए कि नेताओं के लिए यह हर छोटे-बड़े चुनाव में बहुउपयोगी है,पर परिणाम और सिंहासन मिलने के बाद वे भी इससे किनारा कर लेते हैं। हिंदी के प्रति जनप्रतिनिधियों की ऐसी सोंच ही आम आदमी के जनजीवन में हिंदी भाषा को व्यवहार नहीं बना पा रही है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदी को देशभर में चर्चित करने के लिए केन्द्र सरकार को कुछ ऐसी योजनाएं लागू करनी होंगी, जिनसे इस क्षेत्र में रोजगार पनप सके। जैसे ही रोजगार की दिशा में हिंदी का भविष्य आमजन और विशेष रूप से युवा वर्ग को दिखेगा,वे इसकी ओर तेजी से अग्रसर होंगे। एक बार जब हिंदी रोजगार की दिशा में युवाओं के जीवन की साँस बन जाएगी तो हिंदी की महक वैश्विक स्तर पर फैलेगी ही। ऐसे ही जब तक सरकारी दफ्तरों में इसकी अनिवार्यतः नहीं होगी,तब तक हिंदी को हम मूल भाषा बनाने में पीछे रहेंगे। वर्तमान में ऐसा करना बेहतर है कि,हम किसी भी भाषा को बुरा नहीं बोलें। अंग्रेजी का विरोध करने की अपेक्षा इससे कहीं बेहतर है कि,हिन्दी को हर क्षेत्र में इतना लोकप्रिय करें कि अंग्रेजी स्वत: ही तीसरे क्रम पर चली जाए। अब कुछ ऐसे दृढ़ संकल्प लेकर ही हिंदी को राष्ट्रभाषा यानि कंठहार बनाने की अनिवार्य जरूरत है, जिसके लिए केन्द्र सरकार एवं आमजन दोनों को और ईमानदार और जमीनी प्रयास करने होंगे,तभी सकारात्मक परिणाम आएंगे।

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