डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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बंगाल में हिंदी-उर्दू की उपेक्षा…
यह उत्तर भारतीयों के ही नहीं, अन्य राज्यों में बसे बंगालियों के हितों पर भी कुठाराघात है। बंगाल में ५७ लाख से अधिक हिंदी भाषियों एवं शेष २० लाख से अधिक उर्दू-भाषी मूलत: तो उत्तर भारतीय हैं, बंगाली मुसलमान तो बांग्ला ही बोलता है। हिंदी-उर्दू भाषी समुदाय को भारतीय नागरिक के रूप में बंगाल में आजीविका के अवसर मिलते हैं, तो वह बंगाल के आर्थिक विकास में निर्णायक भूमिका भी निभाता है।
इस प्रकार भाषा के माध्यम से हिंदी-भाषियों को आजीविका के अवसरों से वंचित करना, कहीं बंगालियों और उत्तर भारतीयों के बीच वैमनस्य की खाई खोदने का प्रयास तो नहीं ? अगर ऐसा है तो यह भारत की एकता पर एक और प्रहार होगा। यह भी कि ऐसा करके ममता बैनर्जी देशभर में विभिन्न राज्यों में कार्यरत बंगालियों के हितों पर भी कुठाराघात कर रही है।