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किसी को मिलती मलाई,किसी को बासी भात नहीं..

लालचन्द्र यादव
आम्बेडकर नगर(उत्तर प्रदेश)

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आज यहां क्या लोकतन्त्र है!
कुछ कहने की बात नहीं है।
जो जितना पाये ले जाये,
मुझे कोई आघात नहीं है।
किसी को मिलता दूध-मलाई,
किसी को बासी भात नहीं है॥

लोकतंत्र में जनमत की कुछ,
ताक़त,या औकात नहीं है!
सर्दी ठिठुर-ठिठुर कर बीती,
क्या कुचले! जज्बात नहीं हैं!
किसी को मिलता दूध-मलाई,
किसी को बासी…………॥

सैंतालिस से आज तलक फिर
कहने को कुछ बात नहीं है!
कहीं पे कुत्ते पुए खा रहे,
किसी को ये सौगात नहीं है!
किसी को मिलता दूध-मलाई,
किसी को बासी………….॥

पहले भी था,आज वही है,
अरे पुराना साज वही है।
कहीं बज रही है शहनाई,
कहीं सिसकती रात वही है।
किसी को मिलता दूध-मलाई,
किसी को बासी…………॥

गोद लिया जिन गाँवों को तुम,
टपक रही हर बात पुरानी।
अब भी मेरी ही नादानी,
क्यों बदले हालात नहीं है!
किसी को मिलता दूध-मलाई,
किसी को बासी …………॥

बलिदानों के रेट अलग हैं,
हर भावों के गेट अलग हैं।
देशभक्ति में आहुति दे दी,
वे ऐसे खैरात नहीं हैं।
किसी को मिलता दूध-मलाई,
किसी को बासी….भात नहीं है॥

परिचय-लालचन्द्र यादव का साहित्यिक उपनाम-चन्दन है। जन्म तारीख ५ अगस्त १९८४ और जन्म स्थान-ग्राम-शाहपुर है। फिलहाल उत्तरप्रदेश के  फरीदपुर बरेली में रहते हैं, जबकि स्थाई पता जिला आम्बेडकर नगर है। कार्य क्षेत्र-शिक्षक(बरेली)का है।  इनकी लेखन विधा-गीत,गजल,मुक्त कविता आदि है। रचना प्रकाशन विविध पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य-समाज को दिशा देना है। आपके प्रेरणा पुंज-गुरु शायर अनवर जलालपुरी हैं। एम.ए. (हिंदी) बी.एड. शिक्षित श्री यादव को हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। रुचि-कविता लेखन,गीत गाना है।

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