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हो स्वागत नववर्ष

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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नया सबेरा शुभ किरण, नया साल नवरंग।
बढ़े प्रेम शान्ति जगत, पौरुष जलधि तरंग॥

लोभ घृणा मन छल कपट, जंगल बना जहान।
दहक रहा आतंक से, मानवता अवसान॥

भूलो बाइस साल को, हो स्वागत नववर्ष।
विभव सुयश मंगल सुखद, प्रीति नीति उत्कर्ष॥

राजनीति दंगल बना, जंगल बना है आज।
पद सत्ता जिजीविषा, कहाँ मांगलिक राज॥

धीरज संयम सुपथ श्रम, संबल मंगल देय।
नव आशा अरुणिम किरण, कर्म समर हो जेय॥

सदाचार खोया मनुज, संस्कार से हीन।
अनुशासन कहॅं चरित अब, जीवन है गमगीन॥

नया साल चहुॅंमुख प्रगति, देश विश्व कल्याण।
प्रेम शान्ति सहयोग से, त्रिविध विपद से त्राण॥

आशंका जीवन ज़हर, घुले जिंदगी नष्ट।
रिश्ते सब जंगल बने, कलह द्वेष पथभ्रष्ट॥

खुशी कुसुम सुरभित खिले,मंगल मय मुस्कान।
नया वर्ष सब पूर्ण हो, संकल्पित अरमान॥

आस्तिकता हो हृदय में, निज पौरुष विश्वास।
देश धर्म सम्मान मन, मंगल विश्व विलास॥

शिक्षा-दीक्षा सब सुलभ, हो किसान खुशहाल।
परमवीर सीमांत रण, विजय कीर्ति नव साल॥

‘कोरोना’ पशु जंगली, फिर आहट संसार।
रोगमुक्त नववर्ष हो, बचे मनुज संहार॥

मधुशाला नववर्ष हो, प्रेम शान्ति रसपान।
रोजगार सब जन सुलभ, बने युवा इन्सान॥

करे न कोई याचना, मुफ़्तखोर मन चाह।
कर्मवीर जनमत बने, नया वर्ष हो राह॥

राष्ट्र शक्ति जनभक्ति हो, समतामय उपवेश।
मिले न्याय सबको वतन, सब समान संदेश॥

मंगलमय जंगल जगत, मिटे घृणा तम लोभ।
नया वर्ष तेइस सुखद, मिटे व्यथा मन क्षोभ॥

कवि ‘निकुंज’ शुभकामना, मंगलमय नव वर्ष।
अमन-चैन सुख प्रेम यश, सतरंगी उत्कर्ष॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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