महेन्द्र देवांगन ‘माटी’
पंडरिया (कवर्धा )छत्तीसगढ़
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माँ की ममता होती प्यारी,कोई जान न पाये।
हर संकट से हमें बचाती,उसकी सभी दुआएँ॥
पल-पल नजरें रखती है वह,समझ नहीं हम पाते।
टोंका टांकी करती है जब,हम क्यों गुस्सा जाते॥
भूखी-प्यासी रहकर भी माँ,हमको दूध पिलाती।
सभी जिद वह पूरी करती,राह नई दिखलाती॥
सर्दी गर्मी बरसात में,हर पल हमें बचाती।
बुरी नजर ना लगे लाल को,आँचल से ढँक जाती॥
बड़े हुए जब बच्चे देखो,सपने सारे तोड़े।
भूल गए उपकारों को अब,माँ से मुँह को मोड़े॥
हुए गुलाम बहू के देखो,माता बोझा लागे।
बेटा जो नालायक निकला,कर्त्तव्यों से भागे॥
सिसक रही है माँ की आत्मा,कोने में है रोती।
किस कपूत को जाई है वह,आँसू से मुँह धोती॥
जो करते अनदेखा माँ को,कभी नहीं सुख पाते।
घूमता है जब चक्र समय का,जीवनभर पछताते॥
माँ तो ममता की मूरत है,कभी नहीं कुछ लेती।
गिरकर देखो चरणों में तुम,माफी सब कर देती॥
‘माटी’ करते सबसे विनती, माँ को ना तड़पाओ।
रखो हृदय में माँ को प्रेम से,घर को स्वर्ग बनाओ॥
परिचय–महेन्द्र देवांगन का लेखन जगत में ‘माटी’ उपनाम है। १९६९ में ६ अप्रैल को दुनिया में अवतरित हुए श्री देवांगन कार्यक्षेत्र में सहायक शिक्षक हैं। आपका बसेरा छत्तीसगढ़ राज्य के जिला कबीरधाम स्थित गोपीबंद पारा पंडरिया(कवर्धा) में है। आपकी शिक्षा-हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर सहित संस्कृत साहित्य तथा बी.टी.आई. है। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सहयोग से आपकी २ पुस्तक-‘पुरखा के इज्जत’ एवं ‘माटी के काया’ का प्रकाशन हो चुका है। साहित्यिक यात्रा देखें तो बचपन से ही गीत-कविता-कहानी पढ़ने, लिखने व सुनने में आपकी तीव्र रुचि रही है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविता एवं लेख प्रकाशित होते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कनाडा से प्रकाशित पत्रिका में भी कविता का प्रकाशन हुआ है। लेखन के लिए आपको छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा सम्मानित किया गया है तो अन्य संस्थाओं से राज्य स्तरीय ‘प्रतिभा सम्मान’, प्रशस्ति पत्र व सम्मान,महर्षि वाल्मिकी अलंकरण अवार्ड सहित ‘छत्तीसगढ़ के पागा’ से भी सम्मानित किया गया है।