हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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जो कल हमपे है बीत चुका,
उस कल की फिर क्यूँ चाह करें।
जो कल हमने देखा ही नहीं,
उस कल के लिए क्यूँ आह भरें।
है आज हमारे साथ में तो,
इस आज को जी भर के जी लें।
खुशियों के सागर में डूबें,
मस्ती के पैमाने पी लें।
जो कल हमपे है…
कल आया था,कल आएगा,
कुछ लाया था,कुछ लाएगा।
जो आज से ही कुछ पा न सका,
वो कल से फिर क्या पाएगा।
कुछ आज ही कर ले ऐ प्यारे,
क्यूँ कल की आस पे सर मारे।
जो आज हैं गगन पे चमक रहे,
कल जाने कहाँ हों वो तारे।
जो कल हमपे है…
ओ आज का गम करने वाले,
तुझे कल की बहारों से तौबा।
जो आज से ही कुछ ले न सका,
तो कल उसका फिर क्या होगा।
रख आज से ही तू अपना सबब
कल क्या होगा उसे सोच न अब।
कल तो आया और बीत गया
जो आज नहीं तो खो गया सब।
जो कल हमपे है बीत चुका…
परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।