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मेरे गाँव की हवा

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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हाले दिल गाँव का क्या सुनाऊँ आपको,
पहले जन्नत,अब खण्डहर-सा लग रहा है।

जिसे देख आँखें सुकून पातीं थी हवाएं,
जो अब मन-ही-मन खटक रही है।

सूनी वादियों मे जहाँ गीत गातीं थीं हवाएं,
तनहाइयों में जहाँ गुनगुनाती थीं हवाएं।

वन बाग़ उपवन को जहाँ महकाती थीं हवाएं,
शहरों की मिलावट से दूर..
शुद्धता की कहानी बताती थी हवाएं।

देख विज्ञान का चमत्कार,
किसी भद्र पुरुष ने किया उपकार…
गाँव का विकास न जाने किस-किस कारखाने से किया।

अब मौन रहकर कुछ कहने लगीं हवाएं,
न जाने कितने दर्द को सीने में छिपा कर…
गम के साये में रहने लगीं हवाएं।

हर तरफ अब तो काले धुएँ का यूँ बसेरा हो गया,
फिर ऐसा लगे…
काला धुआँ सपेरा और,
हवा नगीना-सा हो गया।

काले धुएँ से ग्रसित हो फिर बिलखने लगीं हवाएं,
मेरे गाँव को छोड़कर…
फिर कहीं दूर जंगलों मे बसने लगीं हवाएंll

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। 
लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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