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हिंदी भाषा का अपने क्षेत्रों में वर्चस्व जरुरी

प्रो.जोगा सिंह विर्क

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शिक्षा नीति २०१९ के प्रारुप पर भाषा को लेकर बवाल……..
आदरणीय,वास्तविक समस्या यह है कि हिंदी विरोधियों का विरोध तो यह कहकर किया जाता है कि यह सब राजनीति है (जो बात बहुत हद तक सही है),पर हिंदी समर्थकों की राजनीति का विरोध नहीं किया जाता। हिंदी समर्थक हिंदी विरोधियों के विरोध में तो जान देने को तैयार हैं,पर भारतीय सरकारों (वर्तमान समेत) के हाथों हिंदी क्षेत्र में अंग्रेजी के ज़रिए हिंदी के हो रहे कत्लेआम पर चुप हो जाते हैं। इसलिए,हिंदी समर्थक पहले हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी के हो रहे कत्लेआम को रोकें,फिर ही उनका दूसरों को हिंदी सीखने को कहने का नैतिक अधिकार होगा। पूरा भारत हिंदी सीख भी ले,तो भी हिंदी का विकास नहीं हो सकेगाl यदि हिंदी भाषी बच्चे अंग्रेजी में पढ़ेंगे तो। अंग्रेजी बड़ी भाषा इसलिए नहीं बनी कि,६०- ७० करोड़ गैर-अंग्रेजी लोग अंग्रेजी सीख गए हैं। अंग्रेजी इसलिए बड़ी भाषा बनी,क्योंकि अंग्रेजी भाषी क्षेत्र में अंग्रेजी का वर्चस्व है। अब चीनी भी इसी लिए बड़ी भाषा बन गई है,क्योंकि चीनी भाषी क्षेत्र में चीनी का वर्चस्व है। फ्रांसीसी,जर्मन,जापानी आदि भी इसी लिए बड़ी भाषाएं हैं,क्योंकि उनका अपने क्षेत्रों में वर्चस्व है। दफ्तरी काम- काज के ‘चार’ शब्द किसी भाषा के विकास में बहुत बड़ा योगदान नहीं हो सकते। आज के युग में किसी भाषा के जीवन (जी हाँ,जीवन) और विकास का रास्ता उस भाषा के क्षेत्र में शिक्षा के माध्यम होने से होकर जाता है। भाषा कैसे जीती-मरती है,इस पर कृपया दस्तावेज़ देखें।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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