मिल जाए आशीष हमें,
दीर्घायु बन जाएं
जीवनभर परोपकार कर,
लोगों के काम आएं।
हृदय,अंतर्मन पुनीत कर,
द्वेष का परित्याग करें
छल,कपट को छोड़ नित,
स्नेह की बौछार करें।
जग में सारे अपने हैं,
अपनों से पहचान मिले
मंजिल कितनी भी पा जाएं,
कभी न हम गुमान करें।
कर्म से श्रेष्ठता मिले,
सतकर्मों को अपनाएं
मानव-मानव एक समान,
कभी न किसी का मन दुखाएं।
निरोगी बनें योग अपनाकर,
रहन-सहन में सात्विकता लाएं
सारे कष्ट तन से हट जाएं,
लम्बी उम्र से जीवन महकाएं।
कोई होता जन्म से दीर्घायु,
सबको आयु नसीब से मिलती
सम्मान बड़ों का करते जाएं,
दीर्घायु जीवन का,वर है मिलता॥
परिचय-श्रीमति मनोरमा चन्द्रा का जन्म स्थान खुड़बेना (सारंगढ़),जिला रायगढ़ (छग) तथा तारीख २५ मई १९८५ है। वर्तमान में रायपुर स्थित कैपिटल सिटी (फेस-2) सड्डू में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-जैजैपुर (बाराद्वार),जिला जांजगीर चाम्पा (छग) है। छत्तीसगढ़ राज्य की श्रीमती चंद्रा ने एम.ए.(हिंदी) सहित एम.फिल.(हिंदी व्यंग्य साहित्य), सेट (हिंदी)सी.जी.(व्यापमं)की शिक्षा हासिल की है। वर्तमान में पी-एचडी. की शोधार्थी(हिंदी व्यंग्य साहित्य) हैं। गृहिणी व साहित्य लेखन ही इनका कार्यक्षेत्र है। लेखन विधा-कहानी,कविता,हाइकु,लेख (हिंदी,छत्तीसगढ़ी)और निबन्ध है। विविध रचनाओं का प्रकाशन कई प्रतिष्ठित दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में छत्तीसगढ़ सहित अन्य क्षेत्रों में हुआ है। आप ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। इनके अनुसार विशेष उपलब्धि-विभिन्न साहित्यिक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भागीदारी व शोध-पत्र प्रस्तुति,राष्ट्रीय-अंतर्राष् ट्रीय पत्रिकाओं में १३ शोध-पत्र प्रकाशन व साहित्यिक समूहों में लगातार साहित्यिक लेखन है। मनोरमा जी की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को लोगों तक पहुँचाना व साहित्य का विकास करना है।