डॉ.एम.एल.गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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‘हिंदी दिवस’ विशेष……..
राजभाषा विभाग सहित भारत संघ के कार्यालयों के हिंदी अनुभागों-विभागों- एककों आदि में और संघ की राजभाषा नीति के लिए कार्यरत सभी कार्मिकों,वे चाहे किसी भी कार्यालय में और किसी भी पद पर क्यों न हों,उनके कार्य का मुख्य उद्देश्य यह है कि संघ के कार्यों में अधिक से अधिक कार्य संघ की राजभाषा हिंदी में हो। हालांकि,इसमें अनेक दुश्वारियां है,जिनसे राजभाषा कर्मियों को आए दिन निपटना पड़ता है। उपर्युक्त में से किसी के कार्य दायित्व में गीत,संगीत, कला,साहित्य आदि का विकास या प्रसार नहीं है। इसके लिए राजभाषा विभाग में कोई निर्देश भी नहीं दिए हैं। हालांकि,यदि कोई राजभाषाकर्मी अपने कार्यालयीन दायित्व के अतिरिक्त कार्यालय समय के पश्चात निजी रूप से साहित्य कला संगीत आदि के लिए काम करता है,तो यह अच्छी बात है और वह इसके लिए स्वतंत्र है। गीत-संगीत,कला-साहित्य आदि के विकास के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय व संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न संस्थाएं कार्यरत हैं,और उनके कार्मिकों को इसका दायित्व सौंपा गया है।
साहित्यकार,नाट्यकर्मी,पटकथा लेखक, फिल्मकार,गीतकार,गायक,अभिनेता व अनेक कलाकार तथा टीवी-सिनेमा आदि की कम्पनियाँ,चैनल आदि इसके लिए अपने स्तर पर बड़े पैमाने पर कार्य कर रहे हैं। हालांकि, ऐसे राजभाषा कार्मिकों की भी खासी संख्या है जो जीवनभर सरकारी साधनों-संसाधनों से राजभाषा के नाम पर ‘१(राजभाषा हिंदी में)’ के बजाए ‘२(कोई निर्देश भी नहीं)’ के लिए काम करते रहे,या कर रहे हैं। सुझाव मात्र इतना है कि,हम अपने उद्देश्य से न भटकें। हिंदी दिवस-हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ, जिनसे कार्यालय में हिंदी में कार्य की प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो सके।