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मादक पदार्थ और ‘सोम’ में कोई एकरूपता नहीं

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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आज के सनसनीखेज समाचारों में ड्रग्स (नशीले-मादक पदार्थ)का नाम अवतरित हो जाता है। मादक पदार्थ का सेवन समाज के पैसे वाले लोगों में करने की बात सुनी जाती है। वर्तमान समय में मादक पदार्थ ने अपना नाम समाज को खूब बाँटा है। जिसके लिए मादक पदार्थ आकाश-कुसुम की तरह था,वे भी इसे अपनी नंगी आँखों से ही देख पा रहे हैं और अनायास बहुत-कुछ सुन पा रहे हैं।
दुनियाभर में युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेने के बाद मादक पदार्थ ने धीरे धीरे भारत में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। बदलती जीवन-शैली में इसने युवाओं को आकर्षित किया है। दिल्ली,मुंबई, बैंगलोर जैसे बडे़-बडे़ शहरों में समारोह-जश्न में मादक पदार्थ बड़ी बेखौफी के साथ मिलने लगे हैं। गांजा,हेरोइन,क्रिस्टल मेथ,एलएसडी और कोकीन कुछ इस तरह के नशे हैं,जिनकी लत अगर आपको या अपनों को लग जाए तो ये जिंदगी बर्बाद कर देते हैं-

एसडीएस-

युवाओं के बीच ये नशा बहुत लोकप्रिय है। जश्न में ये बहुत इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि ये अंदर एक उत्साह पैदा करता है,लेकिन ये स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है।

गांजा-मारिजुआना-

गांजा या मारियुआना को ‘हशीश कैनाबिस’ नाम से जाना जाता है। इसका नशा करने के लिए लोग किसी भी तरह का दाम चुकाने के लिए तैयार हैं। लंबे समय तक इसका इस्तेमाल करने से फेफड़े की बीमारी हो जाती है।

कोकिन-

यह एक लोकप्रिय जश्न (पार्टी) मादक पदार्थ है,जो सबसे ज्यादा खतरनाक नशे में से एक है। इसकी आदत जल्दी नहीं छूटती। इसका असर दिमाग पर ज्यादा होता है,जिससे याद करने की क्षमता पर असर पड़ता है।

शराब-

दुनिया में हर तीन में से दो इंसान को इसकी लत लग चुकी है। अन्य किसी मादक पदार्थ की तुलना में ये सबसे ज्यादा घातक है।

एसएसडी-

एलएसडी मादक पदार्थ की सबसे ज्यादा माँग संभ्रांत इलाकों में होती है। नग्न (रेव) जश्न में इसकी ज्यादा माँग रहती है। इसका सेवन करने वालों की आँखों की पुतलियाँ तन जाती है,जैसे खींच कर लम्बी कर दी गयी हों। बहुत ज्यादा पसीना आना,जैसे व्यक्ति में असहजता और घबराहट की स्थिति में होता है। इसका सेवन करने वाले अपने होश-हवास खो देते हैं। एलएसडी का सेवन करने से गंभीर मनोरोग होने की संभावना होती है।

स्पीड बॉल-

स्पीड बॉल हेरोइन और कोकीन का घातक मेल होता है। जिन लोगों को हेरोइन का नशा कम पड़ जाता है,वो स्पीड बॉल का सहारा लेते हैं। इस मादक पदार्थ की अधिकता से कई सारी मौत हुई है।

क्रिस्टल मेथ-

इसे लेने से शरीर की उर्जा और गतिविधियां तेज होने लगती है। इसे लेने के बाद इंसान को आत्मविश्वास का आभास होने लगता है।यह अवैध तरीके से बनाई जाती है,और दुनियाभर में बेची जाती है। इसकी लत आसानी से नहीं छूटती है।
मादक पदार्थ के हिमायती अपनी बात रखने में यह भी दलील दे देते हैं कि मादक पदार्थ ने लोगों के तेवर कसे हैं,पर वेदों में इसे आम रूप में दिया गया है,लेकिन जो वेदों में ‘सोम’ शब्द का व्यवहार हुआ है,वह या तो ठंडक प्रदान करने वाले चंद्रमा के लिए हुआ है,या सुसंस्कृत व्यवहार करनेवाले ‘सौम्य’ या ‘सौम्या’ के लिए हुआ है,या इसी तरह का व्यवहार करने वाले के लिए।

वेदों में सोम-

वैदिक वाड्गमय में ‘सोम’ का वर्णन आया है तथा उसके रस को पान करने व प्रभाव का पर्याप्त उल्लेख है। उसकी स्तुतियां भी की गई हैं। ऋग्वेद के नवम मंडल व सामवेद के ‘पवमान’ पर्व में सोम विषयक मंत्र एकत्र हैं। मूलत: सोमपर्वतीय क्षेत्र में पाई जाने वाली कोई गुणकारी वनस्पति ही थी,जिसे पत्थरों से घर्षण करके उसके हरित वर्ण रस को निकाला जाता था। फिर उसे एक घड़े में ऊनी कपड़े से छाना जाता था। इस तरह एकत्र हरित रस को दूध में मिलाकर यज्ञ के अवसर पर उसका पान किया जाता था। शकर और मधु जैसे पदार्थ उसमें नहीं मिलाए जाते थे। इस रस में कोई मादक पदार्थ नहीं मिलाया जाता था। साथ ही वह तत्काल पान कर लिया जाता था,अत: मादकता आने की संभावना नहीं थी। इतना अवश्य है कि इसके पान से उत्साह, साहस और बल अत्यधिक बढ़ जाता था,जिससे इसके मादक होने का भ्रम लोगों में उत्पन्न हो जाता है।
वेदों के कुछ मंत्र इसके गुणों पर प्रकाश डालते हैं,यथा-‘इन घूंटों ने मुझे पवन के समान उठा दिया है। क्या मैंने सोम रस पान किया है ?’ ‘मैं पृथ्वी को उठा लूंगा और यत्र-तत्र रख दूंगा।’ इन प्रसंगों में मदिरा शब्द भी आया है,किंतु उसका आशय ‘आनंददायक’ है। सभाओं और युद्ध में भी इसका पान किया जाता था। प्राचीन फारस के ‘जरोष्ट्रियन’ भी इसी प्रकार का एक पेय रखते थे,जिसे वह ‘हाओमा’ कहते थे। भारतीय चिंतन और संस्कृति में वनस्पति और औषधियों का पोषक चंद्रमा है,जिसे सोम भी कहते हैं। इसे देवता का दर्जा दिया गया है और इस हेतु गुणवंती सोम वनस्पति को देवता मानते हुए स्तुतियां भी की गई हैं। इसे ‘प्रकृति देवसत्ता’ भी कहा गया है। यह गुणशालिनी रसवंती वनस्पति अब खोज से बाहर है,जैसे रामायण वर्णित ‘संजीवनी।’
सामवेद में कहा गया है कि-‘शरीर में प्रविष्ट हुआ सोमरस समस्त श्रेयों को प्राप्त कराता हुआ जीव के लिए शक्तिदाता होता है। वह आसुरी भावों को दूर कर उसे दैवी भावों से भर देता है।’
वेद में सोम शब्द की विभ्रांति के बारे में स्वामी अग्निवीर ने अकाट्य तर्क दिए हैं-यह इस लांछन का खंडन करता है कि वेदों में वर्णित ‘सोम’ कोई मादक पदार्थ या शराब है। वेदों की बढ़ती लोकप्रियता से तिलमिलाकर इस तरह के ओछे वार किए जा रहे हैं। इस चुनौती को स्वीकार कर स्वामी अग्निवीर ने सच्चाई दी है-
यह संशय प्रकट किया गया कि
‘सभी प्रसिद्ध विद्वानों की राय में वेद ‘सोम’ या नशे के सेवन को कहते हैं, और सभी वैदिक ऋषि ‘सोम’ का सेवन करते थे।’
इसके प्रत्युत्तर में स्वामी अग्निवीर के विचार थे-‘इसमें तो शिकायत की कोई बात नहीं,यह हकीकत है। यह सच है कि वेद सोम के गुण गाते हैं और ऋषि लोग भी सोम ही के दिवाने थे। यही बात वेदों को अधिक प्रशंसनीय बनाती है। वेदों की इस सच्चाई पर विश्व प्रसिद्ध विद्वान् भी मुग्ध हैं। हाँ,यह समझा जाना चाहिए कि ‘सोम’ का यह नशा कोई सामान्य नशा नहीं है। यह नशा श्रेष्ठ आत्माओं को विश्व कल्याण में अपना सब-कुछ न्यौछावर करने और सतत संघर्ष की प्रेरणा देने वाला नशा है। जीवन के कठोरतम समय और भयंकर दुःख को भी हँस कर सहने की शक्ति देने वाला नशा है।

सोम के अनेक अर्थ-

सोम के अनेक अर्थ हैं। मूलतः उसका अर्थ है ऐसी चीज़ जो प्रसन्नता,शांति,तनाव से मुक्ति और उत्साह देने वाली हो,क्योंकि बुद्धि भ्रष्ट लोगों को शराब भी प्रसन्नता देती है। संभव है कि इसीलिए बाद के काल में ‘सोम’ शब्द को शराब या मादक द्रव्य के पर्याय में प्रचलित कर दिया गया हो।
‘सोम’ चंद्रमा को भी कहा जाता है, क्योंकि उसकी किरणें शीतलता प्रदान करती हैं। इसलिए चंद्रमा का वार-सोमवार। यदि सोम को शराब या मादक द्रव्य कहा जाये तो चाँद को क्या कहेंगे ?
शांत और स्नेहशील व्यक्ति ‘सौम्य’ कहलाते हैं। यदि सोम मतलब नशीला द्रव्य होता तो भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों में लोग अपने बच्चों का नाम ‘सौम्य’ या ‘सौम्या’ क्यों रखते ? इसी तरह मराठी,गुजराती,कन्नड,बंगाली, मलयालम इत्यादि भाषा के शब्दकोशों में ‘सोम’ शब्द से बनने वाले कई शब्द मिलेंगे जिनका अर्थ सौहार्दपूर्ण,शांत,अनुकूल इत्यादि है।
‘सोमनाथ’ गुजरात का सुप्रसिद्ध मंदिर है (जिसे बर्बर आक्रमणकारी मुहम्मद गजनी ने लूटा था) यदि सोम का संबंध किसी नशा कारक चीज़ से होता तो इसका नाम ‘सोमनाथ’ नहीं होता। यहाँ सोम का मतलब है सौम्य,शांति देने वाला नाथ या चन्द्र के स्वामी का मंदिर।
तनाव-शमन करने वाली और आयुवर्धक कुछ औषधियां भी ‘सोम’ कहलाती हैं। जैसे यह औषधि लताएँ ‘सोमवल्ली’ कहलाती हैं-गिलोय या अमृता(टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया) । यह शरीर में शीतलता लाती है और हृदय रोगों में लाभकारी है। ब्राह्मी सहित सुदर्शन या मधुपर्णिका,सोमलता या सौम्या एवं अस्मानिया या सोम आदि नामक पौधे हृदय रोग,अस्थमा और वात व्याधि की औषधि है। इनमें से किसी भी औषधि से शराब नहीं बनती, इनका रस नशाकारी नहीं है।

वेदों में सोम का प्रधान अर्थ-

वेदों में सोम का अर्थ मुख्य रूप से संतोष, शांति,आनंद और व्यापक दृष्टि प्रदान करने वाला ईश्वर है। कुछ ही स्थानों पर खास तौर से अथर्ववेद में ‘सोम’ शब्द कुछ औषधियों के लिए प्रयुक्त हुआ है,लेकिन उसका वर्णन किसी सांसारिक नशीले पदार्थ के रूप में कहीं भी नहीं है।
ऋग्वेद (१-९१-२२) में कहा गया है-
‘त्वमिमा ओषधी: सोम विश्वास्त्वमपो अजनयस्त्वं गा:।
त्वमाततन्थोर्व१न्तरिक्षं ज्योतिषा वि तमो ववर्थ॥’
अर्थात्
‘हे सोम,आप ही हमारे लिए आरोग्य देने वाली औषधियाँ उत्पन्न करते हो,आप ही हमारी प्यास बुझाने वाले पानी को बनाते हो,आप ही सब गतिमान पिण्डों,इन्द्रियों, प्राणियों का निर्माण करते हो और हमें जीवन भी देते हो। आप ही ब्रह्माण्ड को विस्तार देते हो और अंधकार को दूर भगाने के लिए आप ही इस जगत को प्रकाशित करते हो।’
अब कोई नासमझ ही हो सकता है,जो यह कहे कि सोम कोई नशेकारी पदार्थ या शराब है,क्योंकि ब्रह्मांड और नक्षत्रों का रचयिता, जीवन और सभी पदार्थों का निर्माण करने वाला ‘सोम’ स्पष्ट रूप से परम पिता परमेश्वर के लिए ही है।
अतः सोम का नशा माने केवल और केवल ईश्वर के निर्देशों पर ही चलना,हर वस्तु में ईश्वर को ही देखना और उसी से प्रेरणा प्राप्त करना,संसार और इन्द्रियों के दबाव में न झुकना,अंतरात्मा की आवाज़ ही सुनना और अपनी सभी पुरानी आदतों,वृत्तियों और अहं का त्याग कर पूर्ण रूप से ईश्वर के अधीन हो जाना है।
इसे हम ‘अतिचालकता’ के सिद्धांत से समझ सकते हैं कि,जब हम अपनी अंतरात्मा की पुकार को ही सुनने के पूर्ण अभ्यस्त हो जायेंगे,तभी उसी क्षण से यह विश्व हमें प्रकाशमान,ताजगीभरा,आनंदित और ईश कृपा से भरपूर नजर आने लगेगा। इसी उच्च अवस्था को जब योगी सतत पूर्ण रूप से ईश्वर से जुड़ा होता है,सोम का नशा कहते हैं।
ध्यान की इन्हीं उच्चतम अवस्थाओं में पहुँच कर ऋषि लोग ईश्वर से प्रेरित हो अपने ज्ञान नेत्रों से वेद मन्त्रों के अर्थ ‘देखते’ थे अर्थात ‘जानते’ थे। यह तेजोमय अवस्था प्राप्त कर के ही कोई- ‘ऋषि’ या ‘ऋषिका’ बन सकता था।
आयुर्वेद नशा कारक या मादक पदार्थ की परिभाषा में स्पष्ट कहता है-
वह पदार्थ जिससे बुद्धि का नाश हो,उसे मादक पदार्थ कहते हैं। (शारंगधर ४-२१)
आयुर्वेद में नशा करने वाली बहुत सारी चीज़ों का वर्णन आता है-विजया (भांग,चरस), अहिफेन (अफ़ीम),गञ्जिका (गांजा),कनक (धतूरा),मधुक (महुआ) और मैरेय इत्यादि। नशाकारी चीज़ों की नामावली में कहीं ‘सोम’ नहीं है।
इससे कोई भी आसानी से समझ सकता है कि ‘सोम’ कोई बुद्धिकारक और आध्यात्मिक चीज़ है,शराब जैसा कोई मादक द्रव्य नहीं।
ऋग्वेद (९-१०८-३) में देखिए-
‘त्वं ह्य१ङ्ग दैव्या पवमान जनिमानि द्युत्तम:। अमृतत्वाय घोषय:॥’
अर्थात्-हे सोम,तू सब को पवित्र करने वाला और सबका प्रकाशक है। तू हमें ‘अमरता’ की ओर ले चल।
सामान्यजन ‘सोम’ उसे मानते हैं जो औषधि रूप में सेवन किया जाए,परन्तु विद्वतजन जिस प्रज्ञा बुद्धि के ‘सोम’ की कामना करते हैं,सांसारिक पदार्थों में फंसे मनुष्य उसे सोच भी नहीं सकते।
वेदों में आये ‘सोम’ का यह तो सिर्फ छोटा-सा नमूना है। इसी से स्पष्ट सिद्ध हो रहा है कि ‘सोम’-पवित्र आनंददाता ईश्वर है और अपने-आपको उसके सम्पूर्ण अधीन कर देना ही उसका नशा है।
जहाँ शराब या अन्य कोई मादक वस्तु बुद्धि को मूढ़ करने वाली है,इसके विपरीत ऋषियों का ‘सोम’ अत्यंत उच्च बुद्धि देने वाला और दिव्य कर्मों को प्रेरित करने वाला है। इस तरह हम पायेंगे कि आज के बहुचर्चित ‘मादक पदार्थ’ और वेदोक्त सोम में कहीं भी एकरूपता नहीं है। एक विनाशक है,तो दूसरा सर्जक।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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