गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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‘बड़े दिन की छुट्टी’ स्पर्धा विशेष………
“आज २५ दिसम्बर `बड़े दिन की छुट्टी`,वाह मजा आ गया”,घर में घुसते ही मोनू चिल्लाया।
मम्मी-“क्यों चिल्ला रहे हो ? लो आफत आ गयी।
छुट्टियां तुम्हारी-आफत मेरी,सारा दिन किचिन में, कभी पकौड़ी,कभी कचौड़ी बस खिलाते रहो बदमाशों को। मुझे भी ठंड लगती है भाई।”
“पापा से कहो नैनीताल चलें स्नोफॉल देखने।”
मोनू के पापा-“नहीं भाई,मेरा तो ऑफिस है और आजकल वर्कलोड बहुत है,नहीं जा सकता।”
मम्मी-“मतलब मेरी दिनभर की ड्यूटी…हूँ….l”
हर घर की यही कहानी है। बड़े दिन की छुट्टी होती है,माँओं की आफत आ जाती है। रात को देर तक जागना,धमा-चौकड़ी,खाना,फिर सुबह देर तक सोना।बच्चों को ठंड कहाँ लगती है। दादाजी सुबह से उठ जाते,माँ बेचारी सो नहीं पाती। सुबह उठकर दादाजी को चाय,फिर पेपर,फिर गर्म पानी,बस आफत ही आफत।
दादाजी-“बहू,जरा अखबार तो ला दे,और एक कप चाय बना दे।”
मम्मी-“जी,अभी लाई(अखबार दादाजी को लाकर देती है और चाय बनाने चली जाती है)।”
दादाजी-(अखबार पढ़ते हुए)”बहू देखो,आज फिर ठंड से चार लोगों की मौत हो गयी। बेचारे गरीबों की तो ठंड में कोई नहीं सुनता,सरकार भी अलाव की व्यवस्था तब करती है,जब सौ-पचास मर जाते हैं।”
मम्मी-“सरकार भी क्या करे,किस-किसको देखें,कभी दंगें,कभी बलात्कार और कत्ल से व्यथित जनता का आंदोलन। ये तो जनता को भी सोचना पड़ेगा,अपने बच्चों को समान रूप से संस्कृत करें,शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात सरकार तक पहुचाएं,समर्थ जन गरीबों की सहायता करें,शिक्षा का प्रचार-प्रसार करें।”
दादाजी-“सही कह रही हो बहू,चलो आज २५ दिसम्बर है,बाजार चलते हैंl १०० कंबल खरीदने हैं,फुटपाथ के गरीबों को…। चलो बच्चों तैयार हो जाओ,सभी चलते हैं,घर में पड़े-पड़े खा खा कर मुटिया रहे हो।”
(तभी पापा बाहर आते है,और अपनी कविता गुनगुनाते हैंl)
“पवन चले ठंडी,अग्नि हो गयी मंदी
जब से आई सर्दी।
आलू ने भी रंग जमाया,
भर-भर खूब पराठा खाया
चाट-पकौड़ी खूब हैं भाते,
बच्चे भी टिक्की हैं लाते
खा-खा के टिक्की,समोसा,
पेट मोशाय बन गये बब्बू गोसा
सोचा सुबह टहलने जाऊं,
पेट की चर्बी दूर भगाऊँ,
भूले सुबह में उठना,
तान के सो गए रजाई।
और जब नींद से जागे,
चाय की फिर याद है आयी
चाय पीकर कुछ गर्मी आयी,
तो फिर याद है आयी
खा-खा कर जो पेट है पाला,
व्यायाम भी कुछ कर ले भाईll
(सभी हँसते हैं,औऱ अपने-अपने काम में लग जाते हैं,कंबल बाँटने जो जाना थाl)
परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”