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जीवन में आध्यात्म का महत्व

डीजेंद्र कुर्रे ‘कोहिनूर’ 
बलौदा बाजार(छत्तीसगढ़)
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“ॐ संगच्छध्वं संवदध्वं
सं वो मनांसि जानता
देवा भागं यथा पूर्वे
सञ्जानाना उपासते॥”
आध्यात्म का शाब्दिक अर्थ है-अंतर्मन हो जाना। अर्थात,अपनी आत्मा की आवाज है।जीवन में आध्यात्म का बड़ा ही महत्व है।आध्यात्म एवं योग दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। योग साधनाओं में यम,नियम,आसन,
प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि,बंध एवं मुद्रा सत्कर्म युक्त आहार मंत्र जप युक्त कर्म आदि साधनाओं से हम आध्यात्म के परम आनंद की प्राप्ति कर सकते हैं।
आज मानव सांसारिक सुख-सुविधाओं में लिप्त है। सांसारिक सुख एक बाह्य सुख है।मानव अपने पूरे जीवन को सांसारिक सुख में ही बिताकर नष्ट कर देता है। अंत समय में आध्यात्मिक सुख की खोज में देवालय मंदिर,गिरजाघर,मस्जिद आदि में जा जाकर जीवन में शांति ढूंढने के लिए भटकता फिरता है और अंत में अपनी देह त्याग देता है। वास्तविक रुप में असली शांति तो शरीर के अंतर्मन अंतरात्मा में ही बसी रहती है। इसे यदि मानव बाहर ना ढूंढकर अपने अंदर ही यदि ढूंढे तो आध्यात्म के परम सुख शांति को प्राप्त कर सकता है। इसके लिए अंतर्मन होना पड़ेगा,तब परम आनंद की अनुभूति प्राप्त हो सकती है। यदि जीवन में परम सुख की प्राप्ति करना चाहते हैं तो आध्यात्म को मानना पड़ेगा,जानना पड़ेगा और इसे जीवन में अपनाना भी पड़ेगा।

परिचय-डीजेंद्र कुर्रे का निवास पीपरभौना बलौदाबाजार(छत्तीसगढ़) में है। इनका साहित्यिक उपनाम ‘कोहिनूर’ है। जन्मतारीख ५ सितम्बर १९८४ एवं जन्म स्थान भटगांव (छत्तीसगढ़) है। श्री कुर्रे की शिक्षा बीएससी (जीवविज्ञान) एवं एम.ए.(संस्कृत,समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य)है। कार्यक्षेत्र में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी,मुक्तक,ग़ज़ल आदि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत योग,कराटे एवं कई साहित्यिक संस्थाओं में भी पदाधिकारी हैं। डीजेंद्र कुर्रे की रचनाएँ काव्य संग्रह एवं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है। विशेष उपलब्धि कोटा(राजस्थान) में द्वितीय स्थान पाना तथा युवा कलमकार की खोज मंच से भी सम्मानित होना है। इनके लेखन का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियां,आडंबर,गरीबी,नशा पान, अशिक्षा आदि से समाज को रूबरू कराकर जागृत करना है।