कुल पृष्ठ दर्शन : 301

अब ‘अंकीय खानाबदोशी’ का दौर…

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

*****************************************************************

कोरोना काल में हम जिस घर पर काम(वर्क फ्रॉम होम) की कवायद सीख रहे थे,उसी दौरान दुनिया एक पायदान ऊपर चढ़कर खानाबदोश की तरह कहीं से भी काम(वर्क फ्राॅम एनीवेयर)को अपना रही थी। अब भारत में इस नई कार्य संस्कृति को लागू करने की शुरूआत देश के सबसे बड़े ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ ने कर दी है। बताया जाता है ‍कि इससे बैंक की संचालन लागत भी कम होगी। इसके नतीजे क्या होंगे,यह देखने की बात है,लेकिन यह पहल यकीनन अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही दफ्तरी कार्य संस्कृति को बदल सकती है। इससे काम के आवंटन,उसे अपनी सुविधानुसार कहीं से भी पूरा करने और घड़ी के काँटों के बजाए आत्मप्रेरणा से काम करने को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि,यह नई कार्य संस्कृति वर्तमान श्रम कानूनों के लिए भी चुनौती होगी,क्योंकि काम के घंटों से ज्यादा काम पूरा करके देने पर ज्यादा जोर होगा।

दरअसल ‘घर पर काम’ और ‘कहीं से भी काम’ में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। पहले में जहां आपको एक निश्चित जगह से ही काम करना होता है,वहीं दूसरे में अपने उपकरणों के साथ देश और दुनिया के किसी कोने से भी भी काम कर सकते हैं। अंग्रेजी में इसे ‘फ्ले‍क्सीबल वर्किंग’ भी कहा जाता है। विशेषज्ञ माइक स्वि‍गंस्की के अनुसार-“स्मार्ट फोन्स,सोशल मीडिया एक तेज और विश्वसनीय इंटरनेट एक्टिविटी बन गए हैं। प्रौद्योगिकी और टैक्नाॅलाॅजिकल कौशल रोजगार की ‘नई करेंसी’ है। इसकी मांग आईटी,सोशल मीडिया,एनालिटिक्स आदि क्षेत्रों में लगातार बढ़ती जा रही है। आज की नौजवान पीढ़ी यानी ‘जेनरेशन जेड’ ही दुनिया में कार्य संस्कृति का भविष्य तय करेगी,क्योंकि यह पीढ़ी टैक्नाॅलाॅजी के उपयोग में निष्णात है।”

कोरोना तालाबन्दी के दौरान देश की कई कम्पनियों ने ‘घर पर काम’ को लागू किया। कुछ ने तो इसे दीर्घ काल के लिए लागू कर दिया है। इसका कारण दफ्तर के रूप में कार्य स्थल के संचालन पर होने वाले खर्च की बचत है। हालांकि,जानकारों का कहना है कि बहुतों को यह स्थिति बहुत आदर्श नहीं लगती। दरअसल,व्यक्ति की कार्योत्पादकता बढ़ाने और इसके‍ लिए उसे प्रोत्साहित करने के लिए यह देखना भी जरूरी है कि काम कहां से और किन परिस्थितियों में किया जा रहा है। ‘कहीं से भी काम’ के तहत काम काॅफी हाउस में बैठकर,बीमार की तीमारदारी करते हुए किसी अस्पताल में,दोस्त के घर, बीच पर,किसी होटल या पार्क में भी अंजाम दे सकते हैं। तुलनात्मक रूप से इस कार्य शैली में बहुत लचीलापन है। इसमें तनाव भी कम है। इस लिहाज से ‘कहीं से भी काम’ की परिभाषा ज्यादा व्यापक है। जब यह कहा जाता है कि,आप ‘कहीं से भी’ काम कर सकते हैं तो इसके दायरे में आपका कार्यालय,विद्यालय आदि भी आ जाते हैं। इसमें कार्य करने वाले व्यक्ति की आजादी और गति‍शीलता दोनों शामिल हैl खर्चों की दृष्टि से भी यह बेहद‍ किफायती है। न दफ्‍तर की जरूरत और न ही दफ्‍तर रखरखाव करने के खर्च। बताया जाता है कि दुनिया में कई कम्पनियों ने इसे लागू करना शुरू किया है,लेकिन उनकी गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ा। सीधे शब्दों में कहें तो ‘कहीं से भी काम’ आपको अपने काम का माहौल चुनने की आजादी देता है। अब भ्रम होना स्वाभाविक है। इसमें कई खूबियां और दिक्कतें हैं। घर से काम की सबसे बड़ी परेशानी है कि आप इससें ‘कार्य दिवसों’ से ‘छुट्टियों’ को अलग नहीं कर सकते। आपको घर के दायरे में और रोज एक-सा काम करते रहना है। मतलब घर और दफ्तर का एकरूप हो जाना है,जबकि ‘कहीं से भी काम’ का मूल मकसद कि अच्छी प्रतिभाओं को आकर्षित कर उन्हें अपने प्रदर्शन के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध कराना है,साथ ही पूरा भरोसा रखना है।

दुनिया की एक नामी कम्पनी में कर्मचारियों ने ‘अंकीय(डिजिटल) खानाबदोश जीवन-शैली’ विकसित कर ली है। इसके कर्मचा‍री दुनिया के ९३ देशों से काम करते बताए जाते हैं। इसी तरह कम्पनी ‘अपवर्दी’ ने कर्मचारियों को काफी आजादी दे रखी है। इसी प्रकार कई कम्पनी का मानना है कि, स्वप्रेरणा से लोग यदि काम करते हैं तो नतीजे बेहतर मिलते हैं। अब सवाल ये कि ‘कहीं से भी काम’ के तहत किस तरह के काम किए जा सकते हैं,तो इनमें ई-मेलाचार (पत्राचार का ई-स्वरूप),स्काइप फोन काॅल्स,वेबसाइट अपडेशन,आँकड़ा प्रविष्टि जैसे काम शामिल हैं। साथ ही अनुवाद कार्य,तीसरा सर्च इंजिन विज्ञापन (इसमें सोशल मीडिया पर उत्पाद के लिए विज्ञापन अभियान तैयार करना शामिल)भी हैं। इनके अतिरिक्त सोशल मीडिया मार्केटिंग,वेब डिजाइनिंग,सलाहकारिता जैसे डेढ़ दर्जन काम भी इसके तहत किए जा सकते हैं। यह मानने में हर्ज नहीं कि कोरोना प्रकोप ने २१वीं सदी के बाकी सालों की नई कार्य संस्कृति का कार्यक्रम तय कर दिया है। अभी हमें भले यह अजीब,असंभव और अस्वा‍भाविक-सा लगता हो,लेकिन आने वाले जमाने की हकीकत यही है। नई कार्य संस्कृति को अपनाने और उस संस्कृति-वातावरण में काम करने के लिए हमें और समाज को अपना स्थापित दिमाग बदलना होगा। आपको दिया हुआ काम तय सीमा में करना है,फिर आप यह कहीं भी,कैसे भी और कितनी जल्दी कर सकते हैं,इसकी परीक्षा होगी। सबसे ज्यादा परेशानी हमारे सरकारी दफ्‍तरों को हो सकती है,क्योंकि वो तो अभी घर पर काम’ के युग में ही प्रवेश नहीं कर पाए हैं। सरकारी कार्य संस्कृति फाइलों में जीती और चलती है। उनका ऑनलाइनीकरण अभी भी दूर की कौड़ी है। लिहाजा नस्ती,टीप,अवलोकनार्थ,आदेश,आवक-जावक फाइलों के नीचे से ऊपर तक चढ़ने-उतरने में ही समय बर्बाद होता रहता है। कई अफसरों के ई-मेल का पासवर्ड तक बाबू को याद रखना पड़ता है। ऐसे में सरकारी संस्कृति में ‘घर पर काम’ का अर्थ केवल ‘घर पर आराम’ ही होता है। ऑन लाइन कार्य में त्वरितता और सीधी जवाबदेही भी जुड़ती है। सरकारी संस्कृति में सबसे ज्यादा परहेज इसी से किया जाता है,लेकिन दुनिया सरकारी कार्य संस्कृति तक सीमित नहीं है। आधुनिक तकनीक और वक्त के तकाजों ने कार्य संस्कृति को ‘कार्यस्थल संस्कृति’ से बाहर खींचना शुरू कर दिया है। भारत जैसे देश इसे अपनाकर प्रगति की दौड़ में आगे जाएंगे या पीछे,यह देखने की बात है,क्योंकिकहीं से भी काम` औपनिवेशिक काल की कार्यस्थल संस्कृति पर भी आघात करता है। क्या हम इसके लिए तैयार हैं ?

Leave a Reply