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अश्वेत की हत्या पर भारत की चुप्पी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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अमेरिका के अश्वेत नागरिक जाॅर्ज फ्लाएड की हत्या के विरोध में कितने जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। अमेरिका में ऐसी उथल-पुथल तो उसके गृह-युद्ध के समय ही मची थी,लेकिन इस बार तो कनाडा से लेकर जापान के दर्जनों देशों में रंगभेद के खिलाफ आवाज़ें गूंज रही हैं। ब्रिटेन और यूरोपीय देश,जो मूलतः गोरों के देश हैं,वहां भी इतने बड़े-बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं,जितने अमेरिका में भी नहीं हो रहे हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के राष्ट्रपतियों की सभाओं में जहां दो-चार हजार आदमी जुटाना मुश्किल होता है,वहां २०-३० हजार लोग इन रंगभेदी प्रदर्शनों में स्वतः शामिल हो रहे हैं। इन देशों में भी भारत की तरह तालाबंदी है और कोरोना का संकट कहीं ज्यादा हैl फिर भी पुलिस और फौज भी लोगों को रोक नहीं पा रही है,लेकिन भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है,यहां तो उस अश्वेत की नृशंस हत्या पर जूं भी नहीं रेंग रही है। हम लोग क्या इतने स्वार्थी और पत्थरदिल लोग हैं ? वर्तमान सरकार हमारी जनता के इन कुंभकर्णी खर्राटों से खुश होगी,वरना कोरोना के इन बिगड़ते दिनों में एक नया पत्थर उसके गले में लटक जाता। भारत की जनता के दिल में भी दर्द जरुर है,लेकिन कोरोना ने उसके दिल में मौत का डर इतना गहरा जमा दिया है कि वह हतप्रभ हो गई है। अमेरिका के गोरे लोग मांग कर रहे हैं कि वहां के पुलिसवालों पर राज्य सरकारें पैसा खर्च करना बंद करें,क्योंकि गोरे पुलिसवाले काले लोगों पर जानवरों की तरह टूट पड़ते हैं। यदि पुलिस के अत्याचारों के खिलाफ कोई भी आवाज़ उठाता है,तो पुलिस यूनियनें उस पर टूट पड़ती हैं। डोनाल्ड ट्रम्प भी बार-बार पुलिस और फौज के इस्तेमाल की धमकी दे रहे हैं। उनका रक्षा मंत्रालय भी उनके साथ नहीं है। उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता उनके विरुद्ध उठ खड़े हुए है,लेकिन नवम्बर में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में ट्रम्प की कोशिश है कि इस मुद्दे पर अमेरिका के बहुसंख्यक गोरों के मत वे अपने पक्ष में पटा लें। कोरोना के मामले में उनका बड़बोलापन तो उन्हें भारी पड़ ही रहा है,देखें यह रंगभेद क्या रंग दिखाता है ? अमेरिका की आंतरिक राजनीति में भारत न उलझे,लेकिन रंगभेद पर उसकी चुप्पी आश्चर्यजनक है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।