डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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भारत में जनसंख्या वृद्धि में अशिक्षित,पिछड़ा और निर्धन वर्ग ज्यादा दोषी है,जिसमे सभी जाति शामिल हैl जो लोग शिक्षित और जागरूक हैं,वह अपने बच्चों की बेहतर परवरिश के प्रति चिंतित रहते हैं। जनसँख्या नियंत्रण सम्प्रदायगत होने से विवादित होता जा रहा है। एक संप्रदाय देश के निवासी होते हुए भी आबादी की वृद्धि में विश्वास रखते है। यह नियोजित है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक इसका स्वरूप हो गया। इससे किसी को लाभ नहीं है। यदि हम भारत के नागरिक हैं,तो हमें संविधान पर पूरा भरोसा करते हुए उसके विकास में योगदान देना चाहिए। कुछ लोग अपने समाज को बरगलाकर स्वयं शाही जीवनयापन कर रहे हैं,और अपने पिच्छलग्गुओं को गरीबी,अभाव,मूलभूत अशिक्षा,मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखना और धर्म के नाम पर उनके दिमागों में कीटाणु डालकर अपनी राजनीति कर रहे हैंl
बाढ़-सी बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन,आवास व वस्त्र का इंतजाम इस दशक के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए सुखमय जीवन जीने के लिए संसाधनों का बेहतर उपयोग नितांत आवश्यक है। सुनियोजित विकास का सपना तभी पूरा हो सकता है,जब जनसंख्या का नियोजन किया जा सके। अच्छी बात यह है कि,इसको लेकर लोगों में जागरूकता आई है। हालांकि,ऐसा नहीं कि इससे आबादी की रफ्तार कम हो गई है, लेकिन,जनसंख्या की वृद्धि दर में कमी आना इस बात का द्योतक है कि लोग इसके प्रति सचेत हो रहे हैं। वैसे भी परिवार नियोजन अब दंपत्ति की जरूरत बन रहा है।
हम ५ ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना देख रहे हैं,और लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ रहे हैं,लेकिन यह तभी संभव है जब प्रति व्यक्ति आय बढ़े। देश की कुल आय से सही समृद्धि नहीं आएगी,बल्कि हमें हर व्यक्ति को खुशहाल बनाना होगा। देश में संसाधन सीमित हैं,लेकिन आबादी बेहद तेजी से बढ़ती जा रही है। हर साल बढ़ते बेरोजगारी के आँकड़े दर्शा रहे हैं कि हालात ऐसे ही रहे तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है। देखा जाए तो १९५१ में भारत की आबादी ३८.३८ करोड़ थी,जो २०११ में बढ़कर १२१ करोड़ के पार पहुंच गई और साल २०२५ तक इसके बढ़कर १५० करोड़ के पार पहुंचने का अनुमान है। दरअसल,जनसंख्या गुनांक में बढ़ती है जबकि संसाधनों में वृद्धि की दर बहुत धीमी होती है। वाकई अब समय आ गया है,जब देश को जनसंख्या नियंत्रण कानून की सख्त जरूरत है।
आज सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि,बढ़ती आबादी के अनुसार किस तरह ढांचागत सुविधाओं को पूरा किया जाए। यह ठीक है कि आज डीजल,पेट्रोल व रसोई गैस आदि जीवन की जरूरत बन गई है,लेकिन यह भी सच है कि इनका भंडारण आने वाले वक्त में खत्म होने वाला है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए अभी से तैयारी करनी होगी।
जनसंख्या नियोजन को साकार करने के लिए संसाधनों की पूर्ति हेतु कृषि जैसे क्षेत्र पर व्यापक ध्यान देना होगा। कृषि को सम्मान मिलने से ही हर हाथ को काम मिल सकता है। जाहिर-सी बात है कि,भारत जैसे देश में कृषि में रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। आधुनिक खेती भी इसमें सहायक सिद्ध हो रही है।
अब हम दो हमारा एक
का नारा बुलंद करना होगाl परिवार नियोजन हो या जनसंख्या नियोजन,इसकी बात करना कभी बड़ा अटपटा लगता था, लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो अब आम आदमी भी छोटे परिवार का राज समझने लग गया है। बिना किसी दबाव के परिवार नियोजन के स्थायी उपाय अपनाने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। सबसे अहम यह कि अब हम दो हमारा एक
का नारा बलवती होने लगा है। स्वास्थ्य सेवा की सुदृढ़ता के प्रति लोगों का बढ़ता विश्वास और सरकारी अस्पतालों में बंध्याकरण आपरेशन करवाने के एवज में मिलने वाली प्रोत्साहन राशि ने जनसंख्या नियोजन को काफी हद तक साकार किया है। हर वर्ष इसके बढ़ते आँकड़े ने यह सोचने के लिए विवश कर दिया है कि,अब लोग जनसंख्या नियंत्रण के माध्यम से इसके नियोजन के प्रति जागरूक होने लगे हैं।
बढ़ती आबादी के अनुरूप संसाधनों को जुटाने के साथ संसाधनों के अनुरूप आबादी को नियंत्रित करने में आधी आबादी की भूमिका अहम है। जिन परिवारों में महिलाएं शिक्षित हुई हैं,उनमें परिवार नियोजन के प्रति जागरुकता आई है। बच्चों को अच्छी शिक्षा व परवरिश के लिए ग्रामीण इलाकों की भी पढ़ी-लिखी महिलाएं परिवार सीमित रखने पर जोर दे रही हैं।
२ बच्चा नीति का पालन नहीं करने वालों को चुनाव लड़ने,सरकारी सेवाओं में प्रोन्नति लेने,सरकारी योजनाओं या अनुदान का लाभ लेने,बीपीएल श्रेणी में सूचीबद्ध होने और समूह ‘क’ की नौकरियों के लिए आवेदन करने से रोका जाना चाहिए। इसके लिए विधेयक में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि केन्द्र सरकार को राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण मद की स्थापना करनी चाहिए,ताकि जो लोग २ बच्चा नीति का पालन करना चाहते हैं उनकी मदद की जा सके। जिनका १ ही बच्चा है,और नसबंदी भी करा ली है,उन्हें सरकार की ओर से विशेष प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए,तो २ बच्चा नीति का पालन नहीं करने वाले दंपतियों पर लोकसभा,राज्यसभा,विधानसभा,पंचायत और किसी भी निकाय का चुनाव लड़ने पर रोक लगा देनी चाहिए। उन्हें सरकारी सेवाओं में पदोन्नति नहीं देना चाहिएl केन्द्र और राज्य सरकारों की समूह ए
की नौकरियों में आवेदन करने का हक नहीं होना चाहिए और यदि वह गरीबी रेखा से नीचे के हैं,तो उन्हें कोई भी सरकारी राहत नहीं मिलनी चाहिए।
बहरहाल,विश्व में आबादी के मामले में भारत अभी दूसरे क्रम पर खड़ा है और यदि तरक्की की रफ्तार यही रही तो जल्द ही हम चीन को पछाड़ देंगे। हमें हर व्यक्ति को खुशहाल बनाना होगा और ऐसा तभी हो सकता है,जब जनसंख्या का भारी बोझ नहीं हो। यह अच्छी बात है कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर देश के २ बड़े दलों के समान विचार हैl अब सरकार को भी चाहिए कि वह इस दिशा में आगे बढ़े।
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।