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पटाखे एवं आबादी प्रदूषण:मिलकर सुधारना होगा

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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हम कैसे अपेक्षा रखें भारतीयों से कि वे अनुशासन में रहेंगे ? जब बच्चा ६ माह का होता है उस समय जब वह कूदने लगता है। उस समय से वह अवज्ञाकारी होने लगते हैं। आप उसे यहाँ बुलाओ,तो वे वहां जाते हैं। मोबाइल और टी. वी. संस्कृति के कारण बच्चों को भी बहुत छोटे समय से हर त्यौहार की उमंग होने से उसको मनाना चाहते हैं। स्वाभाविक है,जैसे होली में रंग खेलना ,राखी में राखी बंधवाना या इसी प्रकार दीवाली में फुलझड़ी,बम आदि का शौक रहता ही है। जब पडोसी फोड़ेंगे तब वे अपने-आपसे कब मुक्त हो सकेंगे। यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है,जो संभवतः अंतहीन होगा।
भारत वर्ष में कम से कम २० करोड़ ऐसी आबादी है,जो बच्चे और युवा हैं। उनमें ललक रहती है। उनके सामने प्रदूषण,गरीबी,मज़बूरी की कोई परिभाषा नहीं होती। हर माँ-बाप उनके शौक के लिए कुछ तो मनोरंजन करेंगे। जब वे प्रौढ़ होंगे तब उनकी समय के अनुसार समझ बढ़ती है। तब वे उनके प्रति सजग और उदासीन होने लगते हैं। फिर उसके बाद उनके बच्चे होंगे,तब वही प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
इसीलिए सरकार द्वारा प्रतिबन्ध के बावजूद भी पटाखा फोड़ने वाले कम नहीं हो सकेंगे। इसके लिए आवश्यक है कि शुरुआत से ही चीन के पटाखों के आयात पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाए जाएं। इस संबंध में शिक्षा काल से ही जागरूकता लानी होगी कि हमें चीन से आयातित सामग्री का बहिष्कार करना चाहिए, और स्वदेशी सामान का अघिकतम उपयोग करें।
प्रदूषण को रोकना बहुत कठिन कार्य है। इसी प्रकार आबादी नियंत्रण करना भी बहुत आवश्यक कार्य है। हमारे देश में प्रजातंत्र व स्वच्छंदता होने से किसी नियम का पालन संभव नहीं है। बहुसंख्यक समाज हमेशा नियमों को तोड़ते हैं। कारण कि,बहुसंख्यक समाज में सब अपने -आपमें श्रेष्ठ हैं। यह कोई भी आदेश मान्य नहीं करते हैं,जबकि अल्पसंख्यक के स्थानीय समाज प्रमुख का आदेश मान्य होता है।
आज प्रदूषण और आबादी नियंत्रण व्यक्तिगत समस्या नहीं है,बल्कि सामाजिक और देशव्यापी है,जिसका निराकरण सबको मिलकर करना होगा। आगामी वर्ष में भुखमरी का प्रभाव पड़ना है,पर इसके लिए आबादी नियंत्रण भी जरुरी है। दोनों समस्या समान हैं,तथा इसमें बहुत अधिक मनमानी करने से स्वयं को नहीं,समाज और देश को भोगना पड़ता है। आखिर,क्यों नहीं हम अपने नेता ,सामाजिक नेताओं के आदेशों का पालन करने में हिचकिचाते हैं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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