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हिन्दी का बेटा हूँ

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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मैं हिन्दी का बेटा हूँ,
हिन्दी के लिए जीता हूँ
हिन्दी में ही लिखता हूँ,
हिन्दी को ही पढ़ता हूँ।
मेरी हर एक साँस पर,
हिन्दी का ही साया है।
इसलिए मैं हिन्दी पर,
जीवन समर्पित करता हूँll

करें हिन्दी से सही में प्यार,
भला कैसे करें हिन्दी लिखने
पढ़ने और बोलने से इंकार,
क्योंकि हिन्दी बसती है,
हिंदुस्तानियों की धड़कन में।
इसलिए तो प्रेमगीत-भक्तिगीत,
हिन्दी में लिखे जाते।
जो हर भारतीयो का,
गौरव बहुत बढ़ाते हैंll

करो हिन्दी का प्रचार-प्रसार,
तभी तो राष्ट्रभाषा बन पाएगी
और हिन्दी भारतीयों के,
दिलों में बस पाएगी।
चलो आज लेते हैं,
हम सब एक शपथ
कि,करेंगे सारा काम-काज,
आज से सदा हिन्दी में।
तभी मातृभाषा का कर्ज उतार पाएंगे,
और भारतीय कहलाएंगेll

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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