योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….

सूर्य एक प्रत्यक्ष देवता है,जिसका भ्रमण विभिन्न राशियों मेंं होता है। सूर्य जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो उसे ‘मकर सक्रांति’ कहते हैं। वैसे,यह संक्रमण प्रतिवर्ष १४ जनवरी को होता है।
भारत धर्म निरपेक्ष और सांस्कृतिक विविधताओं वाला देश है,जिसमें अनेक पर्व मनाए जाते हैं,व्रत उपवास रखे जाते हैं। इन्हीं में एक पर्व है सक्रांति। यह हिन्दू धर्म का प्रमुख पर्व है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य के एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने को सक्रांति कहते हैं। दरअसल,मकर सक्रांति में ‘मकर’ शब्द राशि को इंगित करता है जबकि ‘सक्रांति’ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर सक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है,तो तिल-संक्रांति भी कहते हैं,क्योंकि इस पर्व में तेलहन तिल की प्रधानता रहती है। तिल का ही तिलकुट, गजक और रेवड़ी खाने की भी प्रधानता रहती है। इस पर्व को मनाने के लिए इस दिन विभिन्न प्रकार के लड़ुवा को दही के साथ मिलाकर भी खाना में खाने की प्रथा है। लोग दूसरों को भी इस प्रकार के सुरुचिपूर्ण भोजन कराकर अति प्रसन्नचित होते हैं।
इस दिन गंगा स्नान कर व्रत,कथा,दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्व है। संक्रांति का उपवाहन मेष है। सक्रांति पर्व हमें जीवन में सूर्य की महत्ता की ओर खींच ले जाता है। इस प्रत्यक्ष देवता की पूरे तन-मन से पूजा करें और उनसे लाभ प्राप्य कर जीवन सुखमय बनाएं। आईए इस वर्ष भी सक्रांति पूरी श्रद्धा और भक्ति से मनाएँ।
पर्व का महत्व व मान्यताएं-
शास्त्रों के अनुसार,दक्षिणायन को नकारात्मकता तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है| इसीलिए इस दिन जप,तप,दान,स्नान, श्राद्ध,तर्पण आदि धार्मिक कर्मों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है| जैसा श्लोक से स्पष्ट है-
‘माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बल। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥’
अलग-अलग मान्यता-
मकर संक्रांति से जुड़ी कई प्रचलित पौराणिक कथाएं हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके लोक जाते हैं। शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं,इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह भी माना जाता है मकर सक्रांति के ही दिन भागीरथ के पीछे पीछे माँ गंगा मुनि कपिल के आश्रम से होकर सागर में मिली थीं। अन्य मान्यता है कि माँ गंगा को धरती पर लाने वाले भागीरथ ने अपने पूर्वजों का इस दिन तर्पण किया था। मान्यता यह भी है कि वाणों की शैय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म ने प्राण त्यागने के लिए मकर सक्रांति के दिन का ही चयन किया था। यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देह त्याग करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से पूर्णत: मुक्त हो जाता ह।#कहाँ और किस रूप में-
जैसी विविधता इस पर्व को मनाने में है,वैसी किसी और पर्व में नहीं। त्यौहार के नाम,महत्व और मनाने के तरीके प्रदेश और भौगोलिक स्थिति के अनुसार बदल जाते हैं। दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल,तो उत्तर भारत में इसे लोहड़ी,खिचड़ी,माघी, उत्तरायण,पतंगोत्सव आदि नाम से जाना जाता है। मध्यभारत में सक्रांति कहा जाता है।
विशेष पकवान-
शीत ऋतु में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी घात करती हैं,इसलिए इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान्न या पकवान बनाए,खाए और बांटे जाते हैं।इन पकवानों में गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी मौजूद होते हैं,इसलिए उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है तथा गुड़-तिल, रेवड़ी,गजक आदि का प्रसाद बांटा जाता है।
सुख-शांति के लिए खिचड़ी दान-
सक्रांति को खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना है। इस दिन प्रसाद के रूप में खिचड़ी बांटने की परम्परा है। मान्यता है कि सक्रांति के दिन खिचड़ी दान करने से जीवन में सुख और शांति आती है। स्वास्थ्य पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ता है। इन चीजों के दान से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। गुड़ एवं तिल का दान करने से कुंडली में सूर्य और शनि की स्थिति मजबूत होती है। समाज में सम्मान बढ़ता है और कार्य सिद्ध होते हैं।
साढ़े साती के लिए दान-
जिन लोगों पर शनि की साढ़े साती का प्रभाव होता है,उन्हें सक्रांति के दिन तांबे के बर्तन में काले तिल को भरकर किसी गरीब को दान करना चाहिए। इस उपाय के करने से कुंडली में शनिदोष दूर होगा। कार्य-व्यापार में तरक्की होगी।
अगर बुरा समय छल रहा हो तो नमक दान तथा माँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए घी का दान भी श्रेष्ठ है। ऐसे ही सक्रांति के दिन गरीब,असहाय और जरूरतमंद लोगों को अनाज दान करना चाहिए। इस उपाय को करने से माँ अन्नपूर्णा का खास आशीर्वाद मिलता है। जातकों के धन-धान्य के भंडार सदा भरे रहते हैं।
जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है,सूर्य की किरणों को खराब माना गया है,लेकिन जब पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है,तब किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। इस वजह से साधु-संत और वे लोग जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं,उन्हें शांति-सिद्धि प्राप्त होती है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पूर्व के कड़वे अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है।
स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के ६ माह के शुभ काल में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं,तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है,अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है।
शास्त्रों के अनुसार संक्रांति को सभी जातकों (स्त्री हो अथवा पुरुष)को सूर्योदय से पूर्व अवश्य ही स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद भगवान सूर्यदेव की अवश्य ही पूजा करनी चाहिए। इससे किस्मत चमक जाती है। जो सक्रांति के दिन स्नान नहीं करता है,वह रोगी और निर्धन बना रहता है। इस दिन तीर्थ, मन्दिर,देवालय में देव दर्शन,एवं पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। इसी तरह सक्रांति के दिन साफ लाल कपड़े में गेहूं व गुड़ बांधकर जरूरतमंद अथवा ब्राह्मण को दान देने से भी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तो इस दिन पितरों का स्मरण करते हुए तिलयुक्त जल देने से पितर प्रसन्न होते हैं।
परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”