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कटी पतंग

रिंकू कुमावत
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….

पंकज और पीयूष नाम के २ मित्र राजस्थान के छोटे से गाँव लालपुर में रहते थे। दोनों बचपन से ही दोस्त थे। यह गाँव हरे-भरे खेतों से लहलहाता था। दोनों मित्रों को पतंग उड़ाने का बहुत शौक था। मकर संक्रांति तो उनका सबसे प्रिय त्यौहार था। गाँव में यह दोनों पतंगबाज के नाम से प्रसिद्ध थे। दोनों की जोड़ी राम-लखन की जोड़ी थी,लेकिन इस दोस्ती को इक दिन मानो नजर लग गई।
मकर संक्रांति के अपने प्रिय त्यौहार के दिन दोनों पतंग उड़ाने के मजे ले रहे थे। फिर अचानक पंकज के पिता जी ने उसे बुलाया और कहा,-‘बेटा हम इस गाँव में अब नहीं रहेंगे,मुझे शहर में अच्छी नौकरी मिल गई है,हम सब अब वहीं रहेंगे।’ यह सुनकर पंकज के होश उड़ गए। वह टूट-सा गया। उसने जाकर यह बात पीयूष को बताई,-‘पीयूष,दोस्त में तुझे छोड़कर जा रहा हूँ।’
पीयूष ने पूछा,-‘क्यों,क्या हुआ ?
पंकज ने उसे पूरी बात बताई। इस बात को सुनकर दोनों दोस्त गले मिलकर खूब रोए। पंकज और पीयूष ने एक-दूसरे को पतंग दी और कहा,-‘यह हमारी दोस्ती की निशानी है,हर मकर संक्रांति पर हम एक-दूसरे को याद करेंगे।’
इसके बाद पंकज हमेशा के लिए वो गाँव और अपने परम मित्र को छोड़कर चला गया। दोनों की मकर संक्रांति एक-दूसरे के बिना अधूरी थी। पीयूष उसे खूब याद करता था। ऐसे ही दस साल गुजर गए।
पीयूष और पंकज दोनों हर मकर संक्रांति पर सिर्फ उनकी आखिरी निशानी पतंग को देख कर एक-दूसरे को याद करते थे। इसी बीच पीयूष की भी नौकरी शहर में लग गई थी। दोनों दोस्तों को इस बात की भनक भी नहीं थी कि वह एक ही शहर में थे। फिर उनको एक करने का त्यौहार आया ‘मकर संक्रांति।’ पीयूष अपने घर पर पतंग को निहार रहा था,अचानक वह पतंग कट गई। विधाता का चमत्कार देखिए कि कटी पतंग उड़ती हुई पंकज के पास जा पहुँची। पीयूष उसका पीछा करते हुए वहां पहुँचा। किस्मत से दोनों फिर मिल गए। दस साल बाद भी एक-दूसरे को पहचानने में देर नहीं लगी,दोनों गले मिलकर खूब रोए। आँखों में उमड़े ये आँसू खुशी के थे,सच्ची दोस्ती के थे,अपनेपन और विश्वास के थे। फिर दोनों ने एकसाथ मकर संक्रांति मनाई। पतंग उड़ाई ही क्या,बस दूसरों के पेंच भी काटे,कि शायद उन्हीं की तरह कहीं-कोई बिछड़े दोस्त मिल जाएं। दोनों बड़े खुश हुए कि,जिस पतंग ने जुदा किया,उसने ही फिर मिलाया था।
सीख:सच्ची दोस्ती कभी नहीं टूट सकती।

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