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एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व

डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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२०१३ की घटना है,मैं नगर निगम के पार्षद का चुनाव लड़ी और दूसरी बार पार्षद बनी। एक सामाजिक संगठन की भी सचिव थी तो मैं और संगठन के अध्यक्ष शहर में अवैध कट्टी घर पर लगातार बोल रहे थे। मैं निगम में कट्टी घर पर लड़ाई लड़ रही थी। उसी प्रकरण में मुझे २ बार फोन पर जान से मारने की धमकी मिली। डरती किसी से नहीं,क्योंकि ईश्वर पर विश्वास करती हूँ,पर पतिदेव के कारण थोड़ी तनाव में थी। हालांकि वह बहुत हिम्मत दे रहे थे,पर स्वयं दिल के मरीज हैं।
उसी समय वृन्दावन बिहारी जी के दर्शन करने चली गई,साथ में पतिदेव और पड़ोस का एक बच्चा था। हम जब आ रहे थे तब वह बोला,आन्टी एक आश्रम में चलो। वहाँ एक सन्त है १३० साल के,वह बंगाली हैं। बस लेटे रहते है उनको कोई होश नहीं है। बस राधे-राधे जपते हैं। शिष्य ही मुँह में जल और दूध आदि डालते हैं। बहुत उत्सुकता हुई तो हम वहाँ पहुँचे। बहुत घना आश्रम था,हरि कीर्तन की आवाज आ रही थी,पर कोई दिखाई नहीं दिया। हम एक कुटिया के आगे खड़े हुए,थे उसी समय एक बहुत ही ओज पूर्ण व्यक्तित्व सामने से आते दिखाई दिए। उनकी उम्र भी लगभग ११० साल होगी। वह रुके और पूछा किससे मिलना है। जब उनको बताया कि उनसे मिलने आए हैं तो वह बोले कि वह तो कान्हा के पास चले गए। मेरे गुरु भाई थे, उन्हीं का आज कार्यक्रम है,जो राधे-राधे का कीर्तन हो रहा है। अचानक मैंने कहा,गुरुजी मैं आपसे ही मिलने आई हूँ। मेरे को शक्ति दीजिए। जैसे ही मैं उनके चरणो को छूने झुकी,उन्होंने मेरे दोनों हाथ अपने हाथोंमें लेकर उठा लिया और बोले तुम मेरी माँ हो। माँ,तुम्हें क्या आशीर्वाद दूं। मैं उनके चेहरे को देखने लगी। वह रोने लगे और मैं भी। पति और पड़ोस का वह बच्चा दोनों अचम्भित से देखते रहे और मुझे ऐसा लगा जैसे कोई शक्ति मेरे अन्दर समा गई। मैं वहाँ से आ तो गई,पर मन वहीं अटका रहा। उसके बाद मैं बहुत बार वृन्दावन गई,पर उन महान विभूति से नहीं मिल पाई। मुझे आज भी ऐसा महसूस होता है कि वह मेरे आसपास हैं और मेरी रक्षा करते हैं।

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