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आर्यन जैसे अमीरजादों की जिंदगी की ‘प्रेरणा’ ?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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बाॅलीवुड के ‘बादशाह’ कहे जाने वाले फिल्म अभिनेता-व्यवसायी शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान को जिस तरह मुंबई की अदालत ने नशा (ड्रग्स) लेने और रखने के आरोप में हिरासत में भेजा है,उसकी पूरी हकीकत तो विवेचना के बाद सामने आएगी, लेकिन इस प्रकरण ने इतना जरूर साफ कर ‍दिया है कि इस देश में अमीरों के बच्चे कौन-सी जिंदगी जी रहे हैं,उनके सपने क्या हैं और उनके आदर्श क्या है ?
इस मायने में आर्यन की कहानी अति अमीर लोगों की संतानों की कृष्णकथा का उजागर हुआ एक हिस्सा भर है। वो बच्चे,जो सोने का चम्मच मुँह में लेकर पैदा होते हैं,उसी में दिन-रात लोटते हैं,दूसरो के लिए जो सपना होता है,वो इनके लिए बिस्तर होता है। उनकी जिजीविषा ‘कैसे और कितना करें’ से ज्यादा ‘क्या और क्यों करें’ से अधिक संचालित होती है। जीवन में कर गुजरने के जुनून के बजाए नशे में अपनी जिंदगी को डुबो देने में ही वो सार्थकता समझ बैठते हैं। शायद इसलिए क्योंकि, ऐसे लोगों के जीवन में ‘संघर्ष’ जैसा कुछ होता ही नहीं। बेहतरीन सितारा शाहरूख खान और गौरी खान के घर में जन्मे आर्यन खान की २३ साल की जिंदगी में शायद यही सबसे बड़ा और नकारात्मक मोड़ है कि वो अभिनय की दुनिया के बजाए नशे की दुनिया से जुड़ गया। एनसीबी ने उस पर जो आरोप लगाए हैं,वो बेहद गंभीर हैं। जो बातें सामने आई हैं,उसके मुताबिक आर्यन ने माना कि वो ४ साल से नशा लेता रहा है। यानी पढ़ाई के दौरान ही उसे नशीले पदार्थों की लत लग गई थी। उसके यार-दोस्त भी ऐसे ही हैं। जैसा कि हर माँ-बाप चाहते हैं आर्यन ने भी अमेरिका से बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स,सिनेमेटोग्रा‍फी और टीवी प्राॅडक्शन में स्नातक किया। इसके पहले लंदन और मुंबई के बेहद मंहगे धीरूभाई अंबानी स्कूल से विद्यालयीन पढ़ाई की। उसने बचपन में छुट-पुट फिल्मों में भी काम किया है। बकौल शाहरूख आर्यन लेखक-निर्देशक बनना चाहता था,लेकिन यह पटकथा इतनी सरल-सीधी नहीं है। न ही उतनी जटिल और खरी है,जितनी पिता शाहरूख की है। शाहरूख एक मध्यमवर्गीय पठान परिवार से आते हैं। उन्होंने युवावस्था में ही माँ-बाप को खो दिया,लेकिन बड़ा अभिनेता और कुछ कर दिखाने के जुनून और जिद ने शाहरूख को इस मुकाम तक पहुंचाया। दरअसल,शाहरूख की कहानी एक मध्यमवर्गीय अथवा निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे की कहानी है। उन बच्चों की महत्वाकांक्षा और संघर्ष के माद्दे की कहानी है। विडंबना यह है कि ऐसी कहानी के निर्णायक तत्व उसी किरदार की अगली पीढ़ी पर लागू नहीं होते,क्योंकि परिस्थितियां और तकाजे बदल जाते हैं। जो शाहरूख के लिए सपना था,वो आर्यन के लिए कभी नहीं हो सकता। जीवन में उन्नति के २ ही मार्ग हैं। एक भौतिक और दूसरी आध्यात्मिक उन्नति। आध्‍यात्मिक उन्नति का रास्ता सबके लिए नहीं होता और भौतिक उन्नति की तो मंजिल ही आर्यन जैसे लोगों के लिए पहला और अंतिम पड़ाव होती है।
आर्यन की कहानी ने बाॅलीवुड के उस काले सच को फिर बेनकाब कर दिया है,जिसमें फिल्मी दुनिया का एक बड़ा वर्ग आज नशे की दुनिया में गले-गले तक डूबा है। पैसा तो दूसरे क्षेत्रों में भी है,लेकिन फिल्मी दुनिया में इसके साथ जबर्दस्त चकाचौंध भी जुड़ जाती है। नशे में झूमने और जीने वालों की मजबूरी शायद यह है कि उनके पास अब करने को और कुछ नहीं रह गया है। न कोई लालसा,न प्रेरणा,न ध्येय,न आँखों में सपना,सिवाय खुद को नशे की अंधेरी दुनिया में डुबो देने के। वो अपनी मन की आँखों पर कोई चश्मा नहीं रहने देना चाहते। वो न तो खुद की बेहतरी के लिए जीना चाहते हैं,न ही दुनिया की बेहतरी के लिए कुछ करना चाहते हैं। नशा उनके लिए मजा है और सजा भी।
इसके पहले हमने रिया चक्रवर्ती,दीपिका पादुकोण, संजय दत्त,फरदीन खान आदि को भी इसी जाल में उलझा देखा। इनमें से कुछ तो किसी तरह बाहर निकल आए,लेकिन कुछ का भविष्य इसी नशे में बर्बाद हो गया। यूँ बाॅलीवुड में नशे की समानांतर दुनिया तो पहले से थी,पर तब अमूमन ये शराब के इर्द-गिर्द ज्यादा घूमती थी। मीना कुमारी जैसी महान ‍अभिनेत्रियों ने खुद को इसी में खत्म किया, लेकिन आर्थिक उदारवाद के युग में जन्मी पीढ़ी के लिए शराब तो नशा ही नहीं रहा। वो हशीश,चरस, गांजे,एमडी जैसे कई घातक नशे को नशा मानती है और उसी में उतरने में जीवन की सार्थकता समझती है। जानते हुए भी ऐसा नशा करना और ऐसे नशीले पदार्थ रखना भी कानूनन गुनाह है।
कुछ रहमदिल लोगों का तर्क है कि आर्यन जैसे बच्चों को सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा किसी भी माँ-बाप के बच्चे के साथ हो सकता है। कौन माँ-बाप चाहेंगे कि उनकी औलाद नशे के लिए जानी जाए। सही है,किन्तु यह बात तभी मान्य हो सकती है,जब गुनाह अनजाने में ‍किया गया हो। आर्यन की कहानी से उसकी मासूमियत का सबूत नहीं मिलता। ऐसा करके उसने खुद का तो नुकसान किया ही,उससे ज्यादा पिता की छवि मूल्य (ब्रांड) को गन्दा किया है। उस पिता शाहरूख खान की छवि को,जो बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए आनलाइन शिक्षा एप की वकालत करते हैं,जिनकी कुल सम्पत्ति ५ हजार करोड़ रू. से ज्यादा है और जो भविष्य में आर्यन को ही मिलनी है,लेकिन आर्यन की नशाखोरी ने शाहरूख की जो बदनामी पूरी दुनिया में कराई है, उसकी कीमत आँकना नामुमकिन है।
जब भी माँ-बाप बच्चों को ‘कुछ भी’ करने की छूट देते हैं तो उसका भावार्थ यही होता है कि बच्चों के अरमान पूरे होने में कोई कमी न रहे। कोशिश यही होती है कि,अपने बचपन में जो हासिल न हुआ, उनके बच्चे उन बातों से वंचित न रहें। संतानों के लिए यह ‘सुविधा मोह’ ही अक्सर माँ-बाप की गले की हड्डी बन जाता है। खासकर उनके लिए जो खुद तो संघर्षों की आग में तपकर‍ निखरे,लेकिन अपनी औलादों को संघर्ष के अंगारों से दूर रखने में ही अपना अभिभावकत्व समझते हैं। उधर अमीरों के बच्चों की दुविधा यह है कि ‘संघर्ष’ शब्द उनके लिए निरर्थक है,ऐसे में संघर्ष करें भी तो किसके लिए, क्या हासिल करने के लिए ? किस प्रेरणा से ?
आर्यन प्रकरण के दौरान सामाजिक संचार माध्यम पर शाहरूख खान और पत्नी गौरी के साक्षात्कार का एक बरसों पुराना वीडियो प्रचारित हो रहा है। आर्यन के जन्म के ३ हफ्‍ते बाद इसमें शाहरूख पुत्र की परवरिश के बारे में अपने ‘महान विचार’ प्रकट करते दिखते हैं। वो कहते हैं-‘मैं चाहता हूँ कि जब वह (आर्यन)३-४ साल का हो तो लड़कियों को डेट करे। सेक्स और ड्रग्स का भी मजा ले। वो एक ‘बैड बॉय’ बने। अगर वह ‘गुड बॉय’ जैसा दिखाई देने लगा,तो मैं उसे घर से निकाल दूंगा।‘ शाहरूख ने तब यह बात शायद मजाक में कही थी,लगता है कि बेटे ने शैशवावस्था में ही आत्मसात कर ली!

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