बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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ये तन पंछी मान कर,उड़ना पंख पसार।
नील गगन की छाँव में,सुन्दर-सा संसार॥
सुन्दर-सा संसार,सजाना साथी सपने।
मिले सभी को प्यार,बसे घर मेरे अपने॥
कहे ‘विनायक राज’,हौंसला रखना रे मन।
मिट जायेगा आज,सुनो रे माटी ये तन॥