संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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हो हरित वसुन्धरा…..
इमारत के बगलवाला,
एक पेड़ क्या गिरा
किसी के लिए,
तमाशा बन गया
तो किसी के लिए,
उत्सुकता का विषय।
आनन-फ़ानन में,
बखेड़ा हो गया
किसी ख़ाली हाथों को,
काम मिल गया
तो किसी के लिए,
क़िस्सा होशियारी
झाड़ने का हो गया,
पर कोई नहीं जानता कि
कितनों का बसेरा,
उजड़ गया…॥