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विकलांग नहीं, दिव्यांग हैं हम

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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दिव्यांग दिवस (३ दिसम्बर) विशेष…

आँखें अँधी है, कान है बहरे,
हाथ-पांव भी भले विकल
वाणी-बुद्धि में बनी दुर्बलता,
विश्वास-हौंसला सदा अटल।

अक्षमताओं से क्षमता पैदा कर,
विकलांग से हम दिव्यांग कहाए
परिस्थितियों से लोहा लेकर ही,
काँटों-पथ पर फूल खिलाए।

तन दुर्बल है, पर ‘एक-इकाई’,
आठ अरब की संख्या पार
लक्ष्य बड़े ‘हाकिन्स’ से ऊँचे,
गहन अंतरिक्ष या समुद्र अपार।

कुछ फलने, कुछ लेने परीक्षा,
उसने हमें ऐसा है बनाया
पर पँखों में अरमान हौंसला,
लक्ष्य हमें आसमान छुआया।

एक अपूर्णता देकर उसने,
तीन दिव्यता हममें भर दी
मेहनत कुछ, उसकी रेहमत से,
आज जीवन खुशहाली कर दी।

हमें हौंसलों से, पहुँच बनानी,
सृष्टि के कण-कण जीवन
खुशहाल प्रकृति है, हमें सजानी,
तन-मन मानव में संजीवन।

कहीं नहीं हम, किसी से कमतर,
भले कोई सहारा न हो
मन विश्वास ले, बढ़ते चले हम,
तूफान भले, किनारा न हो।

दया के हम आकांक्षी नहीं हैं,
जीना चाहें स्वाभिमान से।
‘अजस्र’ उमंग, हममें लहरों-सी,
मन पंख परवाज़, उड़ान चले॥

परिचय-हिन्दी-साहित्य के क्षेत्र में डी. कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाने वाले दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्म तारीख १७ मई १९७७ तथा स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप सम्प्रति से राज. उच्च माध्य. विद्यालय (गुढ़ा नाथावतान, बून्दी) में हिंदी प्राध्यापक (व्याख्याता) के पद पर सेवाएं दे रहे हैं। छोटी काशी के रूप में विश्वविख्यात बूंदी शहर में आवासित श्री मेघवाल स्नातक और स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद इसी को कार्यक्षेत्र बनाते हुए सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्र विविध रुप में जागरूकता फैला रहे हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है, और इसके ज़रिए ही सामाजिक संचार माध्यम पर सक्रिय हैं। आपकी लेखनी को हिन्दी साहित्य साधना के निमित्त बाबू बालमुकुंद गुप्त हिंदी साहित्य सेवा सम्मान-२०१७, भाषा सारथी सम्मान-२०१८ सहित दिल्ली साहित्य रत्न सम्मान-२०१९, साहित्य रत्न अलंकरण-२०१९ और साधक सम्मान-२०२० आदि सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। हिंदीभाषा डॉटकॉम के साथ ही कई साहित्यिक मंचों द्वारा आयोजित स्पर्धाओं में भी प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार पा चुके हैं। ‘देश की आभा’ एकल काव्य संग्रह के साथ ही २० से अधिक सांझा काव्य संग्रहों में आपकी रचनाएँ सम्मिलित हैं। प्रादेशिक-स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं स्थान पा चुकी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य एवं नागरी लिपि की सेवा, मन की सन्तुष्टि, यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ की प्राप्ति भी है।