डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे (महाराष्ट्र)
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पंचकन्या (भाग ४)…
प्रात:स्मरण
अहल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा।
पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम्॥
अब हम जानेंगे इस श्लोक की तृतीय पंचकन्या ‘तारा’ के बारे में। वाल्मिकी ‘रामायण’ में किष्किंधा कांड में ‘तारा’ नामक सशक्त स्त्रीव्यक्तिरेखा का परिचय महापराक्रमी किष्किंधा नरेश वाली महारानी के रूप में होता है। तारा के जन्म की कथा समुद्र मंथन से जुडी है। मंथन के समय २ पराक्रमी वानर बाली और सुषेण देवताओं की सहायता कर रहे थे।मंथन से प्राप्त १४ रत्नों में से १ तारा यह अनुपम सौंदर्यवती अप्सरा भी थी। उसके समुद्र से बाहर निकलते ही दोनों ही उसकी सुंदरता पर लुब्ध हुए और दोनों को ही उससे विवाह करने की इच्छा हुई। बाली तारा के दाहिने तरफ खड़ा था तो सुषेण बाएं तरफ! उस समय भगवान विष्णु ने निर्णय किया कि कन्या की दाहिनी तरफ जो होगा, वह तारा का पति (अर्थात बाली) और उसकी बायीं तरफ होगा, वह पिता (अर्थात सुषेण) होगा। उसके अनुसार सुषेण ने तारा का कन्यादान किया, (इसलिए उसे सुषेण की अयोनिज कन्या माना जाता है) और बाली ने उसका पाणिग्रहण किया।
तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति के अधीन रहते हुए भी वह केवल बाली की पटरानी ही नहीं, बल्कि स्वतंत्र अस्तित्व की धनी एक तेजस्वी स्त्री है। अत्यंत बुद्धिमती, राजनीति में निपुण, दूरदर्शिता से परिपूर्ण, साहसी तथा स्वतंत्र विचारधारा और संपूर्ण आत्मभान जिसे प्राप्त है, वह स्वयं आलोकित तारा है। उसके व्यक्तिरेखा में हमें बारम्बार इन गुणों का प्रत्यय आता है।
बाली और सुग्रीव ये दोनों भाई एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं। बाली किष्किंधा का सम्राट तो सुग्रीव युवराज है। बाली इतना बलवान है कि खुद को अजेय मानने वाले बलशाली रावण को भी परास्त किया। बाली रावण को अपनी बगल में दबाकर कई दिनों घूम रहा था। अंत में इस अपमानजन्य परिस्थिति के बाद रावण ने अपनी हार स्वीकार की एवं बाली की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, परन्तु एक बार बाली मायावी नामक राक्षस के साथ एक गुफा में युद्ध कर रहा था। गुफा के द्वार पर खड़े सुग्रीव को जब रक्त की धारा बाहर आते दिखाई दी, तब उसे लगता है कि बाली मृत हो चुका है (वास्तव में वह खून राक्षस का था)। मायावी भाग न जाए, इसलिए वह एक विशाल पत्थर से गुफा का द्वार बंद करता है एवं स्वयं किष्किंधा का राजा बनता है। कुछ दिनों में बाली वापस आता है। इस गलतफहमी के कारण दोनों भाई एक-दूसरे के परम शत्रु बन जाते हैं। अर्थात बाली अत्यंत बलशाली होने के कारण सुग्रीव को किष्किंधा से बाहर करता है, साथ ही उसकी पत्नी रूमा का अपहरण कर उसे कैद कर लेता है।
सुग्रीव अपने चुनिंदा साथियों समेत ऋष्यमूक पर्वत पर रहता है। यहाँ बाली एक शाप के कारण आ नहीं सकता, इसलिए सुग्रीव सुरक्षित है, परन्तु राम से भेंट होने के बाद उसकी सलाह के अनुसार वह बाली को द्वंद युद्ध के लिए आवाहन करता है। पहले मौके पर दोनों भाई के समान रूप के कारण राम बाली को बाण मारने में असमर्थ होते हैं। तब राम सुग्रीव को गले में माला पहनने के लिए कहते हैं। इसके बाद सुग्रीव तुरंत ही फिर से बाली को ललकारता है, तब तारा संभाव्य संकट को भांप लेती है और बाली से कहती है कि सुग्रीव की उसे समर्थन देने वाले तथा उसके त्राता राम के साथ भेंट हुई है। वह हर तरह से बाली को समझाने का प्रयत्न करते हुए बताती है कि राम का संरक्षक कवच सुगीव को प्राप्त हुआ है, इसी लिए वह यह साहस कर रहा है तथा इसी कारण उसकी इतनी हिम्मत बढ़ गई है। बाली को युद्ध भूमि में जाने से तारा मना करती है और रोकने की भरसक कोशिश करती है, परन्तु आत्मबल के घमंड में चूर और ताकत से उन्मत्त बना हुआ बाली सुजान पत्नी की सलाह को अनदेखा करता है एवं उसे ठुकराकर युद्ध लड़ने चला जाता है। परिणाम वही होता है, जिसका अनुमान अंदेशा था। राम बाली को वृक्ष की ओट से बाण मारता है। वह एक साधारण बाण है, बाली को अपने अपराध का बोध हो कर उसे पश्चाताप हो तथा चैन से मृत्यु मिले, इसलिए राम ऐसा करते हैं। अन्यथा वे अपने अमोघ बाण से वाली का तत्काल वध कर सकते थे।
(प्रतीक्षा कीजिए अगले भाग की…)