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समृद्धि पथ पर अग्रसर हिंदी

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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भक्ति, संस्कृति एवं समृद्धि की प्रतीक हिंदी (हिन्दी दिवस विशेष )…

किसी भी देश की भाषा और संस्कृति का सामंजस्य समय-काल से स्थापित होता है। जब जन किसी भी व्यक्ति की मातृभाषा सुनते हैं, तब सहसा विचार आता है, अच्छा वो व्यक्ति अमुक देश का है, अमुक प्रांत का है, और उसकी संस्कृति की जानकारी भी सहसा मस्तिष्क में आती है। हमारी उत्कृष्ट हिंदी भाषा विश्व में अपनी संस्कृति की गरिमा को दर्शाती है। इससे हम अनभिज्ञ नहीं हैं, कि विश्व की सबसे पुरानी वैदिक भाषा संस्कृत ऋग्वेद की ऋचाएं से हजारों वर्षों की यात्रा कर दसवीं शताब्दी में ‘अपभ्रंश’ से हमारी हिंदी की उत्पत्ति हुई, जिसमें प्रमुख भाषाओं और उपभाषाओं का समावेश है।‌ भोजपुरी, ब्रज, अवधी, शौरसेनी के संग मगही, कन्नौजी, अंगिका, गढ़वाली, जयपुरी मारवाड़ी, नागपुरी, बुंदेलखंडी, कौरवी आदि भाषाओं के समावेश से ही हिंदी भाषा की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है कि आदिकवि अमीर खुसरो ने संपूर्ण भारत, सिंध से दक्षिण भारत भ्रमण कर सिंधी से तमिल भाषा आदि के शब्दों को शब्दकोष में जोड़ ‘खालकबरी’ शब्दकोष लिखा। उस समय यह अपभ्रंश जन में संपर्क की भाषा हिंदी बनी।

इस तरह अनेक भारतीय भाषाओं के समावेश से संपर्क की भाषा हिंदी की उत्पत्ति हुई। भाषा के विकास के लिए उसे अपनाना, उसे आत्मसात करना होता है। इसमें पीढ़ियों के समर्पण के साथ सदियॉं लग जाती हैं। समय के साथ भाषा समाज, संस्कृति और साहित्य में शनै-शनै समृद्ध होती है। साहित्य की दृष्टि से हिंदी पद्य बंद दोहों और छंदों की भाषा रही। गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस की चौपाइयॉं और दोहे, अकबर के नवरत्नों में कवि रहीम की कृष्ण भक्ति के दोहे, मीरा के गिरधर गोपाल के पद्यों-भजनों में और सूरदास के पद्यों तथा भक्ति एवं संस्कृति के समावेश ने भाषा को समृद्ध किया। देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भारतीय साहित्यिक, सांस्कृतिक, भक्ति संग बौद्धिक प्रगति के पथ पर बढ़ती चली गई।
श्रृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन में भी हिंदी सदा रही, पर हिंदी के जन्म और विकास में सनातन और महान भारतीय संस्कृति ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। विद्यापति ने हिंदी को देसी भाषा कहा, सिखों के पुराने ग्रंथों में हिंदी के हजारों पद्य हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के ग्रंथ ‘सत्य प्रकाश’ को हिंदी में प्रस्तुत किया। उर्दू के स्थापित कथाकार धनपत राय (प्रेमचंद जी) हिंदी में कहानी लिख हिंदी के कथा सम्राट बने। इसी क्रम में अनेक नामी मूर्धन्य हस्ताक्षरों ने अनुपम कृतियों का सृजन किया, जिसमें महादेवी वर्मा, नागार्जुन, मैथिलीशरण गुप्त जी, जयशंकर जी, सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, हरिवंश राय बच्चन, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, शिव मंगल सिंह आदि को सदा से याद किया जाता है। ऐसे ही अनेक कवि-कवयित्रियों, साहित्यकारों द्वारा कविता, कहानियों, आलेख, निबंध का लगातार लिखना चलने लगा और हिंदी लोगों के बीच संपर्क की भाषा बन बढ़ने लगी। यानी हिंदी ने विकास की गति पकड़ी।
शिव शक्ति शंकर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना हो, नारायण के विभिन्न रूपों का वर्णन हो, कृपा आशीष की कामना भक्ति हो, श्री राधे-कृष्ण के अनुपम प्रेम के गीत हों, विघ्नहर्ता गणपति बप्पा के स्वागत और कृपा आशीष के गान हों, हनुमान चालीसा हो या आरती संग्रह हों। भक्ति भरे गीतों को भक्त गीतकारों ने संग्रहित किया, जो कई सौ सालों से चलता आ रहा है। इसी तरह भजन-कीर्तन सब हिंदी में यू-ट्यूब में उपलब्ध हैं। भारतीय परिवेश में संस्कृति और भक्ति ऐसी घुली-मिली है,जैसे दूध में शक्कर। आजकल साहित्य में फिर से दोहे, छंदों ने अपनी अस्मिता को बढ़ाना शुरू किया है।यह शुभता भरा प्रगति पथ‌ है। समृद्ध भाषाओं में विपुल साहित्य पाया जाता है,जो समाज, संस्कृति और तरह-तरह की विचारधाराओं को दर्शाता है। प्रगतिशील रहने के लिए दृढ़ता, संकल्प और कर्मठता की आवश्यकता होती है, अतः जीवन यात्रा में संस्कृति और भक्ति के साथ आदर्शों, परंपराओं व सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण आदि का विशेष ध्यान रखना भी आवश्यक है।

हमारे प्रवासी भारतीय विदेशों में आपस में हिंदी भाषा से ही जुड़ते हैं। वे भारत की विभिन्न भारतीय संस्कृति एवं भक्ति भाव को लेकर जाते हैं। मैंने विदेश की यात्राओं में भारतीयों को सत्यनारायण कथा, गृह प्रवेश पूजा, नवरात्रि व्रत पूजा, ओणम, होली, दीपावली विधिवत करते सब देखा है। भक्ति संस्कृति संग उनकी कर्मठता ही उनकी प्रगति समृद्धि का प्रेरक है। विदेशों में हिंदी सम्मेलन, हिंदी की रथ यात्रा हो रही है। अंतरजाल द्वारा राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आभासी कवि सम्मेलन व गोष्ठियाँ हो रही हैं। यह एक उत्तम पहल है। विद्यालयों, महाविद्यालयों में भी संस्थाएं हिंदी में प्रतियोगिताएं करवा रही हैं। हम सभी भारतीय हिंदी और संस्कृति के साथ प्रगतिशील रहें। प्रगति विकास का अर्थ नए वैज्ञानिक एवं तकनीकी आविष्कारों को ग्रहण करना है। हिंदी स्वयं को इसके लिए तैयार कर रही है। समृद्धि के लिए यह अति आवश्यक है कि हम भारतीय पुरातन का महत्व समझते हुए संस्कृति को सही ढंग से अपनाते हुए प्रगति पथ पर सुदृढ़ कर्मशील हों। सबका साथ सबका विकास के लिए हम गर्व से कह सकते हैं कि हमारी हिंदी भाषा भक्ति, संस्कृति, प्रगति के विभिन्न आयामों को आत्मसात कर समृद्धि की ओर अग्रसर है। हमारी हिंद की हिंदी की तकनीकी, सामाजिक, सांस्कृतिक ,बौद्धिक समृद्धि विश्व के फलक पर दमक रही है। श्रद्धा, भाव भक्ति संग हिंद की हिंदी संस्कृति संभालते-संवारते समृद्धि की ओर बढ़ाना हम सभी भारतीयों का संकल्प एवं कर्तव्य है।

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है