राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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मैं झारखंड बोल रहा हूँ,
प्रगति पथ पर डोल रहा हूँ
आँखों में लिए गम के आँसू,
अपने दु:ख के पत्ते खोल रहा हूँ।
जन्म हुआ मेरा सन २००० में,
फंसा रह गया मैं अपने ही
जाति, धर्म और स्थानीयता,
जैसे मुद्दों के विचार में।
मैं झारखंड बोल रहा हूँ,,
नेता अपना मुँह खोल रहा है
संस्कार उस पर बैठे डोल रहा है,
कहाँ अब किसका मोल रहा है ?
तांडव कर रहा है बेरोजगार,
पटा पड़ा है सर्वत्र भ्रष्टाचार
आमजन हो गए हैं बीमार,
अपराधों का बढ़ गया संचार।
मैं झारखंड बोल रहा हूँ,
आती-जाती सरकारों को
आस लगाए देख रहा हूँ,
मैं झारखंड बोल रहा हूँ।
हुए हैं कुछ अच्छे काम भी,
पर घोटाले का बोल-बाला है
आ गया है पर्व मतदान का,
नेता अब हमें लुभाने वाला है।
कोई कहता २१०० लो, कोई कहता २५००,
मैं कहता हूँ इन दोनों से २१-२५ की बातें छोड़
इन्हीं रकमों से उद्योग खोलो, रोजगार मिलेगा,
हमारा और देश का भी मान बढ़ेगा।
राम भी है यहाँ, रावण भी है,
सभी हाथ जोड़े सीधे खड़े हैं
देखे जनता ध्यान से उन्हें,
किनके संस्कार बड़े हैं।
मैं झारखंड बोल रहा हूँ,
बीते समय की बात छोड़।
स्वच्छ मतदान के लिए,
तुम्हारा हृदय खोल रहा हूँ॥
मैं झारखंड बोल रहा हूँ…
परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।