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‘दिनकर’ भवन में बही काव्य धारा

पटना (बिहार)।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के पटना स्थित आवास ‘दिनकर’ भवन में उनके पौत्र अरविंद कुमार सिंह के संयोजन में इस वर्ष भी यादगार काव्य संध्या का आयोजन वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता में किया गया। इसमें नगर के १२ से अधिक नए-पुराने प्रतिनिधि कवियों ने ‘दिनकर’ को अपने गीत-ग़ज़लों के माध्यम से काव्यांजलि अर्पित की।
अध्यक्षीय टिप्पणी में श्री द्विवेदी ने कहा कि बड़ी-बड़ी गोष्ठियों में लोग कविता सुनते नहीं, सिर्फ पढ़ने की ललक रखते हैं, और पाठ के दौरान मोबाइल चलाते हुए देखे जाते हैं। ऐसे में इस तरह की छोटी-छोटी गंभीर गोष्ठियों की बेहद जरूरत है। इसी क्रम में वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर ने कहा कि काव्य पाठ की सार्थकता तभी है, जब वह हृदय से पढ़ी जाए और गंभीरता से सुनी जाए। यहाँ महत्व श्रेष्ठ कविताओं की सार्थक अभिव्यक्ति से है।
अरविंद कुमार सिंह ने ‘आज रिश्तों में दरार ही दरार है, यह सरासर मनुष्यता की हार है’, श्री द्विवेदी ने ‘समय-समय से कचनार खिलने खुलने से बचते’, चंद्रिका ठाकुर देशदीप ने ‘नेह की शाम है, तुम भी आओ न प्रिय’, भावना शेखर ने ‘सागर के पैरों तले, मीलों नीचे, सोई है जमीन!’ सुनाई तो सिद्धेश्वर ने ‘आँखों का पानी नहीं, है गम के आँसू, चमक तो नई है मगर, जख्म पुराना है!’ और प्रभात कुमार धवन ने ‘वही पलवित है वही पुष्पित है’ आदि रचना प्रस्तुत की। सभी ने उत्कृष्ट नज्म, गीत व ग़ज़ल से समकालीन कविता की श्रेष्ठमय प्रस्तुति दी।
गोष्ठी का सशक्त संचालन अरविंद कुमार सिंह ने किया।