कुल पृष्ठ दर्शन : 34

You are currently viewing पिचकारी

पिचकारी

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
************************************

रंग बरसे… (होली विशेष)…

सुखिया की सुबह जैसे ही आँख खुली थी, उसका पोर-पोर दर्द से दु:ख रहा था। तभी बगल में लेटे अबोध लालू ने अपनी फरियाद सुना दी थी,-“अम्मा मोहे भी पिचकारी चाही।”
बेटे की आवाज सुनते ही माँ के शरीर में नयी ऊर्जा आ गई और सोचने लगी कि वह आज लालू के लिए पिचकारी लेकर जरूर आएगी।
कल रात सुखिया की बेवड़े पति ने बहुत पिटाई की थी और वह रोते-रोते भूखी ही सो गई…। वह अपने जख्मों को सहलाती हुई बासी रोटी अपने जिगर के टुकड़े लालू को देकर रोज की तरह अपने काम पर निकल गई थी। वह सड़क पर बैठ कर कुछ फल या सब्जी बेच कर कमाई कर लेती है…। आज वह गन्ना लेकर आई थी और गन्नों पर होरा (हरा चना) और गेहूँ की बाली बांध कर बेच रही थी।
लोगों को उसका बंधा-बंधाया हुआ पूजा के लिए तैयार गन्ना बहुत पसंद आया और हाथों-हाथ बिक गया था। आज उसकी कमाई भी अच्छी हुई थी। उसके चेहरे पर मुस्कान थी। वह अपने लालू के लिए आज पिचकारी और रंग लेकर जाएगी तो वह कितना खुश होगा…। तभी उसको ध्यान आया कि बूढ़ी अम्मा जो खिलौना बेचा करती थीं, आज अपनी जगह पर खिलौना लेकर नहीं बैठी हैं…। उसे अम्मा की फिकर हुई, चलो पहले अम्मा से मिल लें, तब घर जाएँ, सोचते हुए उसके कदम अम्मा की झोपड़ी की ओर बढ गए थे।
टीन का दरवाजा ऐसे ही भिड़ा हुआ था। अम्मा बुखार में तपती हुई कराह रहीं थीं…। वह अम्मा को रिक्शा में बिठा कर डॉक्टर के पास ले गई, दवाई खिलाकर वह खाली हाथ अपने घर की ओर बढ़ी तो लालू की पिचकारी उसे याद आई…। वह उदास कदमों से घर की तरफ बढ़ चली तो लालू का उदास चेहरा उसकी आँखों के सामने घूमने लगा…। वह उसका सामना करने से कतरा रही थी, कि लालू खुशी से उछलता-कूदता हाथ में लाल नयी पिचकारी लेकर “अम्मा… अम्मा…” पुकारता हुआ आया…।
“अम्मा हम मंदिर के बाहर खेलत रहे, वहीं पर एक बाबू आए और सबहिन का पिचकारी और खाने का पैकिट दीहिन। उनके बेटवा का जनम दिन रहे।”

सुखिया की आँखों में बेटे की खुशी देख होली के रंग चमक उठे…। वह पिचकारी को छूकर निहाल हो रही थी…। नम आँखों से बोली… “ऊपर वाले तेरी लीला।”