संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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‘चिपको आंदोलन स्मृति’ विशेष…
आज भी अंधाधुंध कटते वृक्षों को देख,
मुझे सहसा याद हो आयी है रैणी गाँव की
उस गौरादेवी की, जिसने आज ही के दिन
अपने जैसी कई अनपढ औरतों
को लेकर चला दिया था ‘चिपको आंदोलन’,
अपनी जान की परवाह किए बगैर
चिपक गई थी वृक्षों से सैकड़ों सैकड़ों औरतें
शायद वृक्ष क्या है यह बताने के लिए काफी है,
इन औतों का वृक्षों से चिपक जाना
इधर पढ़े-लिखे लोगों ने मचा रखा है,
अनगिनत वृक्षों का बेरहम कतल
रोज धराशाई हो रहे हैं लाखों- लाखों कीमती वृक्ष,
शस्य श्यामला भूमि हो रही है दिनों-दिन बंजर
पृथ्वी के सीने में आदमी ने घोंप दिया है खंजर,
नदियाँ पाटी जा रही है, समुद्र पाटे जा रहे हैं
रातों-रात खड़े हो रहे हैं बहुमंज़िले मंजर,
करोड़ों वृक्षों की बलि लेकर बन रहे हैं महामार्ग
मार्ग बनते ही ठेकेदार कर देते हैं हाथ खड़े,
मुकर जाते हैं १ के बदले ३ वृक्ष लगाने के वादों को
आदमी ‘कोरोना’ झेल चुका, प्राणवायु की कीमत जान चुका
फिर भी जारी है मासूम वृक्षों का बेरहम कतल,
ऐसे में मुझे सता रहा है बार-बार एक प्रश्न-
वह रैणी गाँव की गौरा अनपढ़ थी या,
ये तथाकथित पढ़े-लिखे लोग जिन्हें क्षुद्र स्वार्थों के अंधेरे में।
न पृथ्वी नजर आ रही, न जीवन,
प्रश्न विकराल है…॥
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।