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कैसी तृष्णा…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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प्रयत्न का पानी प्राप्त करती तृष्णा,
कामना की खाद पर पोषित होती तृष्णा…
हर हृदय खेती में लहलहाती हरियाती तृष्णा,
कभी उज्ज्वल कभी काली तृष्णा…।

कभी न भरने, मरने वाली तृष्णा…
लौकिक तृष्णा, इहलौकिक तृष्णा,
जीवन की तृष्णा, मृत्यु पश्चात मोक्ष की तृष्णा,
भौतिक साधन-संसाधन की तृष्णा…।

जिजीविषा और जीवन की तृष्णा,
पुत्र की तृष्णा, तत्पश्चात प्रपौत्र की तृष्णा…
स्वछंद और बद्ध सूत्र की तृष्णा,
प्रेम, ममता, मान, देह, धन, ज्ञान की तृष्णा…।

‘मेरे बाद भी मैं रहूँ’ इस भान की तृष्णा…
तृष्णा से त्रस्त पस्त आदमी,
और तृष्णा तृप्त, तृष्णा दीप्त,
मुँह चिढ़ाती बलखाती- इठलाती तृष्णा…।
खिजाती, रुलाती, सताती,
जीवन और मृत्यु की साथी,
अमृत सिंचित तृष्णा…॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।