डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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अभी समस्त विश्व पटल पर विस्तार वाद, दंगा, हिंसा, घृणा, स्वार्थ विष फैला हुआ है और मानवीय एवं न्यायिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है। काम, क्रोध, लोभ मोह मद, और विषाद रूपी बहुविध रोग से आज दुनिया सदाचार, नैतिकता, संस्कार और अपनी गौरवमयी संस्कृतियों से विरत दानवीय चरित्र की बनती जा रही है। परहितार्थ स्वयं का त्याग, परमार्थ खुशियों और मुस्कानों से मानव जीवन विरमित हो गया है। संवेदना, सहनशीलता और सहिष्णुता अब परवेदना, असिहष्णुता और क्रूरता, हिंसात्मक रूप में परिवर्तित हो गई हैं। ईश्वरीय सृजित हरितिम प्रकृति और उर्वर धरा को भौतिक सत्तासुख महत्वाकांक्षी शासक, व्यापारी और जनमानस को भयावह दिव्यास्त्र आणविकास्त्रों से दहलाने व सर्वनाश करने पर आमादा है।
आज की भयावह दशा और दिशा को देखकर कवि हृदय व्याकुल हो रहा है। ईश्वर की अनमोल धरोहर यह धरती अपनी सन्तानों द्वारा ही मातृ कोख को क्षत-विक्षत करने को उद्यत देख आज सिसकियाँ भर रही हैं। हजार वर्षों की दासता में जकड़ा भारतवर्ष आपसी जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्रगत स्वार्थ और सत्ता पद अभिलाषा की वजह से विदेशी आक्रान्ताओं को बुलाता रहा तथा वे भारत माँ का चीरहरण करते रहे। भाई-भाई को मरवाने के लिए विदेशियों का आवाहन और पुनः इन देशद्रोहियों द्वारा स्वयं को नष्ट करवाने की निंदनीय तथा घातक परम्परागत श्रृंखला के तहत हूणों, शकों, गजनवी, गोरी, लोदी, खिलजी, तुगलक, तैमूर, मुगलों, कुतुबुद्दीन, फ्रांसीसी, मंगोलियन-ब्रिटिश अंग्रेजों की लूट-मार, असहनीय अत्याचार , शोषण, हत्या और सोने की स्वर्ण भूमि भारत एवं सम सनातनी भारतीय हजारों वर्षों से तहस- नहस होते रहे हैं। आज भी ये भारत और सनातन विरोधी कुछ देशद्रोही खुद सनातन धर्म, परम्परा, संस्कृति, अपने वेदों, उपनिषदों, स्मृति ग्रन्थों, सनातनी इष्ट देवी-देवताओं, मंदिरों, सन्तों, बुद्धिजीवियों का खुलेआम उपहास उड़ाते हैं। ऐसा करते वक्त उन्हें संविधानिक अदालती कानून और सामाजिक-सांस्कृतिक जनभावनाओं का भी ध्यान नहीं होता है। वे सभी सनातनी सनातन विरोधी और मुस्लिम मत-बैंक की ओट में सम्पूर्ण लाखों वर्ष पुरानी
वैदिक धर्म-संस्कृति और सभ्यता को तिरोहित और सौ करोड़ सनातनियों को शान्ति, प्रेम, समरसता और कर्मवीरता से विरत उन्माद, दंगे, हत्या और परस्पर घृणा की ज्वालामुखी में झोंकना चाहते हैं। ये सनातनी देशद्रोही सन्तान दूसरे धर्म-धर्मावलंबियों के तथा उनकी देशविरोधी गतिविधियों के बारे में एक शब्द नहीं बोल सकते हैं। ये दोहरापन कलुषित चरित्र और छद्म धर्मनिरपेक्ष वादियों के कारण समरसता और सद्भावना को नष्ट करता आ रहा है। मानवता और आपसी भाईचारा से बढ़कर देश और दुनिया की कोई खूबसूरती नहीं हो सकती।
समझना पड़ेगा कि मानव-मानव एक है और सबकी धमनियों में एक समान लाल शोणित बह रहा है। परस्पर सौहार्द्र, समुदारता, मोहब्बत और अमन-चैन परस्पर सहयोग को जन्म देते हैं, किन्तु जातिवाद और धार्मिक उन्माद के दावानल में दहक रहे भारत को देखकर कवि मन निकुंज मर्माहत हो रहा है। भगवान्, ख़ुदा, वाहे गुरु या यीशू सब दुनिया के जन-मन को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की प्रेरणा दें, यही अभिलाषा और प्रभु से प्रार्थना है। अन्यथा आज की नफ़रती दुनिया और देश ही मानव विनाश का कारण होगा…।
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥