दिल्ली
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क्या सबसे अच्छी दोस्त…? (विश्व पुस्तक दिवस विशेष)….
‘विश्व पुस्तक दिवस’ जिसे ‘विश्व पुस्तक प्रतिलिपि दिवस’ भी कहा जाता है, पुस्तक-संस्कृति को बल देने और पढ़ने की प्रवृत्ति के आनंद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाने वाला विश्व उत्सव है। हर साल २३ अप्रैल को दुनियाभर में पुस्तकों के दायरे को पहचानने, उसे प्रोत्साहन देने एवं दुनिया को जोड़ने के लिए पुस्तक उत्सव अतीत और भविष्य के बीच एक कड़ी, पीढ़ियों और संस्कृतियों के बीच एक पुल है। किताबें अपने सभी रूपों में हमें सीखने और खुद को सशक्त रखने का मौका देती हैं। वे हमारा मनोरंजन भी करती हैं और दुनिया को समझने में मदद करती हैं, साथ ही दूसरों की दुनिया में झांकने का मौका भी देती हैं। यह सभी आयु वर्ग के लोगों, विशेषतः बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार किताबें चुनने और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसका उद्देश्य बच्चों को पढ़ने में आनंद आने का अनुभव कराना और उनकी पढ़ने की आदत को मजबूत बनाना है।
इस दिन कई विश्वप्रसिद्ध लेखकों का जन्मदिन या पुण्यतिथि होती है।
पैरिस में यूनेस्को की एक आमसभा में फैसला लिया गया था कि दुनियाभर के लेखकों का सम्मान करने, उनको श्रद्धांजली देने और किताबों के प्रति रुचि जागृत करने के लिए इस दिवस को मनाया जाएगा।
पुस्तकें ज्ञान का भण्डार हैं। पुस्तकें हमारी दुष्ट वृत्तियों से सुरक्षा करती हैं और सकारात्मक सोच को निर्मित करती है। अच्छी पुस्तकें पास होने पर उन्हें मित्रों की कमी नहीं खटकती है, वरन वे जितना पुस्तकों का अध्ययन करते हैं पुस्तकें उन्हें उतनी ही उपयोगी मित्र के समान महसूस होती हैं। पुस्तकें एक तरह से जाग्रत देवता हैं, उनका अध्ययन, मनन और चिंतन कर उनसे तत्काल लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तकनीक ने भले ही ज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, पर पुस्तकें आज भी विचारों के आदान-प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम हैं। महात्मा गाँधी को महान बनाने में गीता, टालस्टाय और थोरो का भरपूर योगदान था।
पुस्तकों में जीवन का रहस्यमय एवं रोमांचक संसार है। इसलिए पुस्तक संस्कृति को प्रोत्साहन देकर ही हम उन्नत संस्कार, संसार का निर्माण कर सकेंगे। किताबों में मसलन टोनी मोरिसन ने लिखा है- “कोई ऐसी पुस्तक जो आप दिल से पढ़ना चाहते हैं, लेकिन जो लिखी न गई हो, तो आपको चाहिए कि आप ही इसे जरूर लिखें।” शिक्षाविद चार्ल्स विलियम इलियट ने कहा कि “पुस्तकें मित्रों में सबसे शांत व स्थिर हैं, वे सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान होती हैं और शिक्षकों में सबसे धैर्यवान तथा श्रेष्ठ होती हैं।”
निःसंदेह पुस्तकें ज्ञानार्जन करने, मार्गदर्शन एवं परामर्श देने में में विशेष भूमिका निभाती है। सत्साहित्य में तोप, टैंक और अणु से भी कई गुणा अधिक ताकत होती है। अणुअस्त्र की शक्ति का उपयोग ध्वंसात्मक ही होता है, पर सत्साहित्य मानव-मूल्यों में आस्था पैदा करके स्वस्थ एवं शांतिपूर्ण समाज की संरचना करती है। इसी से सकारात्मक परिवर्तन होता है जो सत्ता एवं कानून से होने वाले परिवर्तन से अधिक स्थायी होता है।
पुस्तकें चरित्र निर्माण का सर्वाेत्तम साधन हैं। उत्तम विचारों से युक्त पुस्तकों के प्रचार और प्रसार से राष्ट्र के युवा कर्णधारों को नई दिशा दी जा सकती है। देश की एकता और अखंडता का पाठ पढ़ाया जा सकता है और एक सबल राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है। पुस्तकें प्रेरणा की भंडार होती हैं उन्हें पढ़कर जीवन में कुछ महान कर्म करने की भावना जागती है। पुस्तकें कल्पवृक्ष भी है और कामधेनु भी है, क्योंकि इनकी छत्र-छाया में मनुष्य अपनी हर मनोकामना को पूरा करने की शक्ति एवं सामर्थ्य पाता है। पुस्तकें अमूल्य है और जन-जन के लिए उपयोगी है, निश्चित ही पुस्तकें व्यक्ति में सकारात्मकता का संचार करती है।
इंसान घर बदलता है, लिबास बदलता है, रिश्ते बदलता है, दोस्त बदलता है, फिर भी परेशान क्यों रहता है ?, क्योंकि उसने पुस्तकरूपी कल्पवृक्ष की छाया में बैठना बन्द कर दिया है, जबकि इन्हीं पुस्तकों की सार्थक कोशिश होती है कि इंसान बदलें, उसकी सोच बदले, उसका व्यवहार बदले लेकिन बदलने की उसकी दिशा सदैव सकारात्मक हो, ताकि वह जिंदगी के वास्तविक मायने समझ सके। जब तक इंसान खुद को नहीं बदलता, वह अपनी मंजिल को नहीं पा सकता। मंजिल को पाने एवं जीत हासिल करने के लिए स्वयं का स्वयं पर अनुशासन जरूरी है। यही सूत्र पुस्तक-संस्कृति की उपयोगिता एवं महत्व को उजागर करता है। पुस्तकें एक रचनात्मक एवं सृजनात्मक दुनिया है, जिसमें विद्वान लेखकों, विचारकों एवं मनीषियों ने अपनी कलम में वही सब कुछ लिखा होता है जिसे उन्होंने अपने आस-पास की जिंदगी में देखा है, भोगा है। ये पुस्तकें एक जरिया है, झरोखा है, जिसमें युगों का ज्ञान है, महापुरुषों के अनुभव हैं, संतपुरुषों की सूक्तियाँ हैं, प्रबुद्धजनों के जीवन का निचोड़ हैं। इनकी प्रेरणा और ऊर्जा से इंसानों को रोशनी मिलती है, जो सबके घर में आनंद को और सूरज को अवतरित करने की क्षमता का स्रोत भी है। छपी हुई किताबों का महत्व कम नहीं हुआ है और वह अब भी प्रासंगिक हैं। दुनिया को बदलने में सत्साहित्य की निर्णायक भूमिका असंदिग्ध हैं। निश्चित ही पुस्तक-प्रेरणा भारतीय जन-चेतना को झंकृत कर उन्हें नए भारत के निर्माण की दिशा में प्रेरित कर रही है।