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सत्यवान-सावित्री

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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अपनी जब छोड़ी नहीं आस।
बनी बिरहा मधुमय मधुमास…॥

नाम सती सावित्री जिसका,
गौरव गाए युग-युग‌ उसका।
यमराजा को दी चुनौती,
मृत्यु‌ देव से माँग मनौती।
ले आई यमलोक से साथ,
पति को वापस अपने पास॥
बनी बिरहा‌ मधुमय…

कथासार ऐसी है सुन लो,
थोड़ा धर्म-शास्त्र से गुण लो।
इक बांका युवक राजदुलारी,
सती पति पर सर्वस्त्र हारी।
सत और प्रेम का बल लेकर,
यम से लड़ने का था प्रयास।
बनी बिरहा मधुमय…

भरी आत्मविश्वास चंचला,
वीरांगना थी अद्भुत चपला।
नार कुसुम कली कोमलांगी,
बल साहस में गजब तुरांगी।
दक्ष योगनियांँ उसकी दास,
चम्पई वर्णी विद्युत भास॥
बनी बिरहा मधुमय…

नभ नापे कर अश्व सवारी,
तीर तूणीर धर बल भारी।
आखेट खेल वन में करते,
मिला वीर सत्यवान विचरते।
अंकुर फूटा नेह का आज,
हृदय में हुआ प्रेम आभास॥
बनी बिरहा मधुमय…

दोनों का हुआ प्रणय परिणय,
फिर गूँज उठा अम्बर जय-जय।
था सत्यवान अल्पायु शापित,
मृत्यु व्याह होते ही ज्ञापित।
हाहाकार मचा सावित्री,
तोड़ा श्राप नहि हुयी उदास॥
बनी बिरहा मधुमय मधुमास…

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।