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हिंदी का पूरा ज्ञान नहीं, इसलिए पढ़ाने में कठिनाई

हैदराबाद (तेलंगाना) |

दक्षिण भारत के शिक्षकों के पास हिंदी का पूरा ज्ञान नहीं होता, इसलिए उन्हें छात्रों को पढ़ाने में कठिनाई होती है। जो यहाँ से सीखकर जाएँगे, उससे शिक्षकों के अंदर नए विचार उत्पन्न होंगे, जो आगे जाकर समाज के विकास में सहायक होंगे।
यह बात मुख्य अतिथि डॉ. आर. जयकरण (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास, चेन्नई तथा त्रिचि के कार्यकारी सदस्य) ने कही। अवसर बना केंद्रीय हिंदी संस्थान (हैदराबाद केंद्र) द्वारा तमिलनाडु राज्य के ईरोड जिले के हिंदी प्रेमी मंडल के हिंदी प्रचारकों तथा निजी माध्यमिक विद्यालय के हिंदी अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए नवीकरण पाठ्यक्रम’ का, जो ललिता नर्सरी में किया गया। इसमें ११२ ने प्रशिक्षण लिया। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ए.आर. चंद्रशेखरन ने ईरोड हिंदी प्रेमी मंडल के इतिहास और उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला।
आभासी पटल के माध्यम से निदेशक प्रो. सुनील बाबूराव कुलकर्णी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि यह नया युग प्रादेशिक भाषाओं का युग है। सभी भाषाएँ समानांतर हैं पर उनका दिल या मन समुद्र की तरह है। इसका विकास करना हम सबका कर्तव्य है। भाषा नए-नए रोजगार देने में सक्षम है तथा इससे मनुष्य के कौशल एवं सामाजिक विकास होता है।
पाठ्यक्रम के दौरान क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे ने भाषा विज्ञान तथा उसके विविध पक्ष आदि विषयों पर ज्ञानार्जन किया। डॉ. फत्ताराम नायक ने हिंदी व्याकरण तथा उसके विविध पक्ष, रस आदि, डॉ. दीपेश व्यास ने भाषा शिक्षण, मनोविज्ञान, डॉ. अन्बुमणि ने हिंदी शिक्षण में प्रौद्योगिकी का प्रयोग, आदि, डॉ. के. रामनाथन ने अनुवाद प्रक्रिया एवं डॉ. चंदू खंदारे ने सृजनात्मक लेखन आदि विषय पर व्याख्यान दिए।
संचालन एस. स्वर्णाम्बिगै ने किया। आभार प्रतिभागी समूह द्वारा प्रस्तुत किया गया।