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कुसुमलता

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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‘कुसुमलता’ नाम था उसका,
पूरी सोसायटी में कोई ऐसा नहीं था, जिसे उसका नाम न पता हो।वो थी ही ऐसी, साफ-सुथरे कपड़े पहनती, सबका यथायोग्य आदर करती, सब उससे बहुत खुश रहते।बस उसकी एक आदत सबको बहुत परेशान करती है, वह यह कि वो अपने पास मोबाइल नहीं रखती। इससे सभी को कठिनाई का सामना करना पड़ता।
क्या कहें उसे, कभी नौकरानी या मेड कह कर मैंने उसका परिचय नहीं दिया। हमेशा मैं उसे कुसुम कह कर ही बुलाती। उसने सबको बता दिया था, कि मैं जितने बजे आपके घर आती हूँ उससे यदि दस-पन्द्रह मिनट की देरी हो जाए, तो आप समझ लेना मैं नहीं आऊँगी। वैसे तो जब उसे छुट्टी लेनी होती है, तो पहले से बता देती है पर यदि अचानक कोई काम आ गया तो किसी को पता नहीं रहता।सबके घर जाने का समय बिल्कुल निश्चित था। यदि अलग से कुछ करवाना है तो वह सबके घर का काम पूरा करने के बाद ही करती।केवल ४ घरों में काम करती।
एक दिन मैं चाय पीते-पीते सोच रही थी, कि १० बज गए… कुसुम अभी तक नहीं आयी, कल भी नहीं आई थी। आज फिर से वही सब काम, सोच-सोच कर हाथ-पैर ढीले हो रहे थे। इतने में ही सजी-सजाई अभिसारिका-सी कुसुम धीरे-धीरे मेरे बहुत क़रीब चली आई, नई साड़ी, चूड़ियाँ, कानों में नए झुमके। मैं लगातार उसे देखे जा रही थी कि वह बोल पड़ी-“दीदी कल १ साल के बाद वो घर आया है। यह सब वह मेरे लिए लाया है,” कहते-कहते वह सकुचाने सी लगी थी।
मैं भी सब भूल कर उसकी बातें सुनती रही। फिर बोली-“दीदी आपकी बहुत याद आएगी” तो मैंने पूछा-“क्यों कहीं जा रही हो क्या ?”

वह बोली-“जी दीदी। कह रहा था मैंने वहाँ घर ले लिया है। अब साथ ही ले चलूँगा, क्योंकि जल्दी छुट्टी नहीं मिलती।”