कुल पृष्ठ दर्शन : 16

You are currently viewing सुरमई भोर के साए में…

सुरमई भोर के साए में…

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
*********************************************

जब भी गाँव के खेत में जाता हूँ, हर बार प्रकृति अपने नये मनोरम और लुभावन अंदाज में नजर आती है। प्रकृति अपने मोहक बाहुपाश में मन को जैसे जकड़ लेती है कि प्रकृति के सानिध्य में हर लम्हा अनोखा और नया अनुभव देने वाला होता है।
आज भली प्रातः के ४ बज रहे होंगे, मैं नींद से जागकर फार्म हाऊस के आँगन में आया। रात को

जमकर वर्षा हो चुकी थी, तो वर्षा की बूँदों में कहीं-कहीं मेघों की आड़ से चाँदनी निकलकर बूँदों में घुल रही थी। हवा में बारिश की छुअन की ठंडक थी। शायद, कहीं घनघोर बारिश हो रही होगी…।
आसमान में मेघ आंदोलित होकर शांत हो चुके थे। मेघों की आड़ से झाँकती चाँदनी की टिम-टिम दिलकश प्रतीत हो रही थी। चाँदनी कभी छुप जाती, कभी टिमटिमाने लगती…। मेघ और चाँदनी की ये लुका-छिपी कितनी ही देर तक निहारता रहा। एक सुंदर अहसास मन में जाग रहा था कि सामने वाली इमली के विशाल पेड़ से कोयलिया की कूक सुनाई पड़ी। कोयलिया अपने मस्त अंदाज में आलाप भर रही थी। प्राण कानों में लाकर जाने कितनी देर तक वह सुरीली धुन सुनता ही रहा…।आलाप बढ़ता ही जा रहा था कि अचानक २-३ कोयलिया इमली के अंदर घुसकर गाने का साथ करने लगी। इमली के विशाल घने पेड़ कोयलों के कोरस वाले गानों से गूँज उठे। सारे वातायन में मधुरिम स्वरांजली घुलती रही। भोर के अंधेरे में इमली के पेड़ काले पहाड़ों से नजर आ रहे थे और कोयलों का आलाप बढ़ता ही जा रहा था। पेड़ जैसे किसी संगीत सदन से प्रतीत हो रहे थे। कोयलिया थोड़ी रुक जाती, और अचानक सभी मिलकर फिर गाने लगती… फिर रुक जाती अचानक…। पेड़ों से उठती उन स्वर लहरियों को जाने कितनी देर तक सुनता रहा। कैसा मधुरिम आलाप था वह! सारा समां उस सुरमयी आलाप से भर उठा था। उन स्वर लहरियों को शायद मेघों ने भी सुन लिया था, इसलिए तेज बहते काशाय मेघ अब स्थिर होते नजर आ रहे थे और उन लहरियों का पता लगाने बारिश की रिमझिम बूँदें पृथ्वी पर उतरने लगी थी। बारिश ने अपना तराना छेड़ दिया था और वह कोयलिया के स्वरों से मिलान करना चाह रही थी।
मैंने नजर उठाकर प्राची पर देखा तो तब स्वर्णिम किरणों का अम्बार फूट रहा था। मृदुल, स्नेहिल किरण इमली के बदन में घुलने लगी थी। रिमझिम बारिश, कोयलियों का आलाप और उनमें घुलती अब ये स्वर्ण रश्मियाँ… सारा आकाश आलोकित करने लगी थी। अद्भुत, अस्मरणीय…।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।