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प्रबुद्ध रचनाकार करते हैं सार्थक आलोचना का स्वागत-श्री प्रभाकर

पटना (बिहार)।

अधिकांश लघुकथाकारों ने अच्छा प्रयास किया है, किंतु उन्हें अपने जानकारों से राय-परामर्श अवश्य लेनी चाहिए। कुछ रचनाओं में बेहद पुराना और घिसा-पिटा विषय दोहराया गया है। स्तरीय आधुनिक लघुकथा का अध्ययन करना चाहिए, इससे उनकी कल्पना का दायरा विशाल होगा। प्रबुद्ध रचनाकार आलोचना से नहीं डरते, बल्कि सार्थक आलोचना का स्वागत करते हैं।
यह बात लघुकथाओं पर सार्थक और गंभीर समीक्षा प्रस्तुत करते हुए ‘लघुकथा कलश’ के संपादक एवं वरिष्ठ साहित्यकार योगराज प्रभाकर ने कही। यह अवसर रहा भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी अवसर साहित्य पाठशाला-सह कार्यशाला का। आयोजन करने वाले वरिष्ठ कवि और संयोजक सिद्धेश्वर ने संचालन करते हुए कहा कि छोटे आकार में सार्थक लघुकथा लिखने वाले लघुकथाकारों में गोविंद भारद्वाज का नाम सम्मान पूर्वक लिया जाता है। उन्होंने बाल कहानियों, कविताओं और लघुकथाओं के माध्यम से बच्चों को सामाजिक, सभ्यता, संस्कृति से प्रेरित करने के अलावा किसानों और मेहनतकश लोगों के जीवन और परिश्रम से अवगत कराते हुए उन्हें बेहतर भविष्य की राह दिखाने का प्रयास किया है। कार्यशाला संग लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद भारद्वाज ने कहा कि आज का कार्यक्रम लघुकथा साहित्य को समर्पित करके सिद्धेश्वर जी ने लघुकथा लेखकों के लिए एक सुदृढ़ मंच दिया है, इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस प्रकार का आयोजन होता रहना चाहिए और सीखने-सिखाने का सिलसिला जारी रहे। सम्मेलन में शामिल रचनाकारों में प्रमुख शेफाली श्रीवास्तव, निर्मला कर्ण, कल्पना भट्ट, पुष्पा पांडे, राज प्रिया रानी और अनिल शूर आदि की उपस्थिति रही।

प्रभारी ऋचा वर्मा के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ।