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बस वही मनाते हैं त्यौहार

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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लोग उन्हें भले कहें गँवार,
पर वही मनाते हैं त्यौहार।
सावन के जब लगते मेले,
आप तो घर में पड़े अकेले।
वो परिवार के संग हैं जाते,
हँसते-हँसाते मौज मनाते।
गुड़ की सेंव शौक से खाते,
बच्चों को कांधे पर बिठाते।
और पुण्य कमाते बारम्बार,
बस वही मनाते हैं त्यौहार॥

आती जब रंगों की होली,
वो बनते मस्तों की टोली।
घर में रंग और भांग बनाते,
लोट-लोट के खुशी मनाते।
खूब प्रेम से मिलने आते,
सीधे चरणों में गिर जाते।
खूब दिखाते आपसे प्यार,
बस वही मनाते हैं त्यौहार॥

दीवाली की तो बात निराली,
घर में सदा रहती तंगहाली।
अब नए कपड़े कैसे आएंगे,
फिर बच्चे कैसे मुस्काएँगे।
चूने-गेरू से हो जाती पुताई,
लाई बताशे की बने मिठाई।
द्वार पर सजता वन्दनवार,
बस वही मनाते हैं त्यौहार॥

सुख में आपके वो न आते,
कभी आप उनको न बुलाते।
दुःख में वो खुद ही आ जाते,
आपका दुःख बाँट कर जाते।
उनका नहीं कोई स्वार्थ होता,
ईश्वर ही का बस साथ होता।
उन पर प्रभु की कृपा अपार,
बस,वही मनाते हैं त्यौहार॥

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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