सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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श्रेया ऐसी ही थी, थोड़ी ही देर में सबको अपना मित्र बना लेती।जब भी कक्षा में कोई ऐसा चेहरा आता, जिससे सब दोस्ती करना चाहते तो बस श्रेया को आगे कर देते और थोड़ी ही देर में वह उसे मित्र बनाने में सफल हो जाती।बड़ी मिलनसार और साफ दिल थी वह, कोई बात मन में नहीं रखती थी। सब उसे पसंद भी बहुत करते थे, पर कुछ छात्रों को यह अच्छा नहीं लगता था। उनका कहना था कि ऐसी क्या खास बात है उसमें, साधारण-सी दिखने वाली सामान्य घर की थी श्रेया।
किशोर उम्र के छात्र-छात्राएँ,
यौवन की सीढ़ी पर पहला कदम रखते हुए बच्चे। कुछ ने एक योजना बना ली, कि इसे परेशान करना तो बनता है। फिर क्या था, योजना के अनुसार सब बातें तय हो गईं कि इस बार नवागंतुक के साथ क्या करना है। एक छात्र ने ऑफिस से पता लगा लिया कि उसकी कक्षा में आज एक एडमिशन हुआ है और कल वह छात्रा कक्षा में आने वाली है। दूसरे दिन ये रोज़ से जल्दी आ गए और नई छात्रा के आते ही उसे अपना परिचय देते हुए स्कूल घुमाने के बहाने कक्षा से बाहर ले गए तथा श्रेया के विषय में बहुत बुरा-भला कहते हुए उससे दूर रहने को कहा। जो छात्रा आज आयी थी, उसकी मम्मी और श्रेया की मम्मी बचपन की दोस्त थी। अभी-अभी पापा का तबादला इस शहर में होने पर श्रेया की मम्मी ने ही इस स्कूल में प्रवेश लेने के लिए सलाह दी थी और श्रेया और पारुल (नई छात्रा) दोनों एक-दो बार पहले भी मिल चुके थे। अतः, पारुल और श्रेया की दोस्ती हो चुकी थी। पारुल ने श्रेया को सारी बातें बता दीं। दोनों अपनी क्लास टीचर के पास गए और उन्हें सारी बातें बता दी। जिन छात्रों ने श्रेया के विषय में भला-बुरा कहा था, उन्हें बुलाया गया और कारण पूछा कि आप लोगों ने क्यों गलत बातें कही।छात्रों ने भविष्य में कभी फिर कभी ऐसा न करने की शपथ लेते हुए माफ़ी माँगी।
