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पिता को समझना आसान नहीं

कल्याण सिंह राजपूत ‘केसर’
देवास (मध्यप्रदेश)
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वो भावनाओं में नहीं,
वह जिम्मेदारियों को निभाने में
पूरे जीवन को दाँव पर लगा देता है।

पत्नी की मुस्कराहट,
बच्चों के सपनों को पूरी शिद्दत और लगन से पूरा करता है
नारियल के सामान पिता,
परिजनों को क्रूर, कुरूप, सख्त लगता है।

एक समय के बाद कहाँ समझते, उनके जज्बातों,
भावनाओं, विचारों को…
जो पिता पूरी ज़िंदगी सबसे अच्छा घर को देता है,
मीठी वाणी, सत्कार और सम्मान को,
वही पिता तरस जाता है।

तब एक पिता,
निराश, उदास, हताश,
और खुद छला-सा महसूस करता
जब उसे अपेक्षित सम्मान नहीं मिलता है।

जब धन संपत्ति न हो तो,
वही पिता संतानों पर बोझ बन जाता है।
अंतर्मन से टूट कर बिखरा पिता,
खुश होने का स्वांग क्यों रचता है ‘केसर’…?