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छेदों से छलनी हुई थाली

राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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‘आपने मेरे भाई के बारे पढ़ा है और मैने अपने भाई को पढ़ा है।’ ‘हसीना पार्कर’ फिल्म की नायिका जो कुख्यात आतंकी दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना की भूमिका में है पुलिस वालों के समक्ष अपने भाई की महानता का बखान करती है। ये छवि सुधारक संवाद फिल्म के कथानक की मांग है ? नहीं। ये प्रयास है दाऊद को रॉबिनहुड बताने,उसकी नई छवि गढ़ने का जो उसके खूंखार अंत:करण के विपरीत है। गुजरात के व्यापारियों से रंगदारी वसूलने वाले बदनाम तस्कर अब्दुल लतीफ पर बनी फिल्म ‘रईस’ में दंगों के दौरान फिल्म का नायक हिंदू-मुसलमान दोनों के लिए लंगर लगाते हुए दिखाया जाता है। इस फिल्म की कहानी के लेखक चाहे राहुल ढोलकिया हों,परंतु कलम में स्याही किसी ओर ही की लगती है। देगची में रंधते हुए दलिए के दो-चार दाने ही पूरी देग का हाल बता देते हैं,जरूरी नहीं कि पूरी देग में हाथ डाल कर देखा जाए। फिल्म सितारे सुशांत राजपूत की मौत से शुरू हुए प्रकरण के मध्यांतर में कंगना रनौत और शिवसेना के टकराव की नई कहानी को आगे बढ़ाते हुए सदी के महानायक की धर्मपत्नी व समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन ने मुंबई फिल्म उद्योग की गंदगी का पटाक्षेप करने वाले भाजपा सांसद व अभिनेता रवि किशन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि-कुछ लोग जिस थाली में खाते हैं,उसी में छेद करते हैं। जया जी थाली में छेद की बात करती हैं, जो शायद मुंबईया फिल्मों के प्रारंभ की बात होगी,वर्तमान में तो छेद दर छेद से थाली छलनी हुई दिख रही है।
ऊपर की फिल्म हसीना पार्कररईस तो केवल उदाहरण मात्र हैं,अगर सभी छेदों का जिक्र मात्र ही किया जाए तो बॉलीवुड के स्याह पक्ष पर एक अच्छा खासा ज्ञानकोष तैयार हो सकता है। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद देश का हर नागरिक इस सच को समझने लगा है कि बॉलीवुड दिखावटी मुखौटा पहन कर लोगों के सामने कुछ और है,इसके पीछे कुछ और। ऐसे में भाई-भतीजावाद,अश्लीलता,नक्सली-जिहादी गठजोड़,मादक पदार्थों के नशे में चूर बॉलीवुड का शुद्धिकरण किया जाना अब जरूरी हो गया है।
बॉलीवुड में महिला शोषण का तो खुद कंगना रनौत ने पर्दाफाश कर दिया,जिसमें उन्होंने लिखा कि,-‘कौन-सी थाली दी है जया जी और उनकी इंडस्ट्री ने ?` अभी एक उभरती कलाकार पायल घोष ने ‘मी टू’ अभियान के तहत निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप पर उसका यौन शोषण करने का आरोप लगाया है। इस तरह के आरोप दसियों फिल्म सितारों-निर्माता पर लग चुके हैं। यह अब खुला रहस्य है कि बहुत से कलाकारों को कई तरह के समझौते करके फिल्मों में काम मिलता है,न कि उनकी अभिनय क्षमता के आधार पर। खुद बॉलीवुड इस विषय पर कई फिल्में बना चुका है। शायद यही कारण है कि, आज फिल्मों में अश्लीलता व भौंडेपन को कहानी की मांग,दर्शकों की पसंद आदि की आड़ में बचावी दिया जाता है।
इसी तरह ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म का वह दृश्य सभी को याद होगा,जिसमें गंगा घाट के पंडे को बलात्कारी के रूप में दिखाया गया,परंतु क्या पाठक किसी एक फिल्म का नाम बता सकते हैं जिसमें किसी पादरी या मौलवी को इस फूहड़ अंदाज में पेश किया गया हो ? फिल्मों में शादी के दौरान होने वाले बवाल के समय सबसे पहले फेरे करवाने वाले पुजारी को भागते हुए दिखाया जाता है,और कई बार तो उसके गिरेबान को भी पकड़ते हुए दृश्यों को देखा है परंतु इसके विपरीत सनी दयोल की फिल्म का वह दृश्य भी सबको याद होगा कि,नमाजी की भूमिका में कई गुण्डे उस पर हमला कर देते हैं लेकिन ‘देसी ही-मैन’ अपनी जगह से टस से मस तक नहीं होते। उदारवाद के नाम पर ‘पी.के.’ और ‘ओह माई गॉड’ जैसी हिंदू हृदय घातक फिल्में तो खूब बनती हैं परन्तु बॉलीवुड की यही उदारता खास उपासना पद्धति पर आस्था बन जाती है। कंगना ने राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद, वहां के पाखंड और सेकुलरवाद को लेकर जो बातें कही हैं,उनको हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। दरअसल,बॉलीवुड में नक्सली व जिहादी गठजोड़ हावी है जो कार्यक्रम सामने रखकर चलता है,वही फलता-फूलता है,जो उसकी हाँ में हाँ मिलाता है।
वास्तव में बॉलीवुड अगर एक बहुविध कलाकारों से भरी फिल्म है,इसमें नायक और खलनायक दोनों हैं। नशा बॉलीवुड की एक सच्चाई है,जिसकी सफाई इसलिए जरूरी है क्योंकि देश का नौजवान बॉलीवुड की चकाचौंध में अपने सपने तलाशता है। यहां का अंधेरा पूरी नस्ल को अंधा कर सकता है। नशों को लेकर ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म बनाने वाला बॉलीवुड खुद राकेट की गति पर हवा से बातें करता दिख रहा है। अफसोस की बात है कि,सुशांत की मौत के कारण तलाशती हुई जांच एजेंसियां नशे के मकड़जाल तक पहुंची,तो बॉलीवुड की थाली और दाल काली जैसी अनावश्यक चर्चाएं छेड़ कर नशे को खाद-पानी देता दिख रहा है। बॉलीवुड को आईना दिखाना अब जरूरी हो गया है। इसका एक मात्र उपाय यही है कि पूरे फिल्म उद्योग का शुद्धिकरण हो। छलनी हुई थाली के छेद भरने के प्रयास होने चाहिए,न कि उन पर पर्दादारी के।

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