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आखिर तुम मुझे कब तक रोकोगे

शिवनाथ सिंह
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)
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बनवारी लाल कोई कायर इंसान नहीं था,लेकिन जब बॉस के सामने खड़ा होता तो हाँ जी या जी हाँ के अतिरिक्त कुछ और न बोल पाता। यदि वे उसे अपने कमरे से दुत्कार कर भी बाहर कर देते तो,वह चुपचाप बाहर निकल आताl आकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता,पर जब वही बनवारी लाल अपने घर पहुँचता तो उसका कोई दूसरा ही रूप होता। मंजरी जब चाय लेकर उसके पास पहुँचती,तो वह दफ्तर की खीज मंजरी पर उतारता और अनाप-शनाप बातें करते-करते झगड़े पर उतारू हो जाता। उसकी जवानी पूरे उफान पर होती और कभी कभी तो वह मार-पिटाई तक पर उतर आता। मंजरी आए-दिन की इन हरकतों से तंग आती जा रही थी। वह उसे कभी अपने मायके जाने की धमकी देती तो कभी पुलिस को घर बुलाने की,पर बनवारी लाल पर कोई असर ना होता और येन-केन प्रकारेण मंजरी को मंजरी को चुप करा के ही दम लेता।
उस दिन जब वह घर लौटा तो,बड़ा गुमसुम-सा था। खाने की मेज पर पहुँचा तो वह खाना खाते-खाते अचानक ही मंजरी पर बिखरने लगा। मंजरी ने समझाया भी कि,पहले खाना खा लें,फिर बैठ कर बात करते हैं पर बनवारी लाल तो आपे से बाहर हुआ जा रहा था। स्थिति ऐसी बनी कि उसने सारा ही खाना उठाकर दूर फेंक दिया,घर का सामान इधर-उधर करने लगा और मंजरी से हाथा-पाई पर उतारू हो गया। मंजरी का धैर्य टूट चुका था,वह चिल्लाई- मैं देखती हूँ आखिर तुम कब तक दबंगई दिखाते हो,तुमने तो सारी हदें तोड़ दी हैं और फोन तक पहुँच पुलिस का नं. डायल कर दियाl लगा जैसे पुलिस कुछ अधिक दूरी पर नहीं थी। थोड़े से ही अंतराल पर पुलिस इंस्पेक्टर घर पर थे। घर का सामान बिखरा पड़ा था और बनवारी लाल और मंजरी बदहवास से। उन्हें घर की स्थिति समझते देर न लगीl फिर भी वे पति-पत्नी को साथ लेकर बैठ गए और स्थिति को विस्तार से जानना चाहा। मंजरी का बोलते चले जाना और बनवारी लाल का चुप जैसा रह जाना,काफी था। इंस्पेक्टर सब समझ गए और समझाते हुए क्या,बल्कि चेतावनी देते हुए स्पष्ट कर दिया कि दोबारा शिकायत आई तो मुझे कानूनी कारवाई के लिए बाध्य होना पड़ेगा।

इंस्पेक्टर जा चुके थे। इस बीच मंजरी कुछ अधिक ही स्वाभिमानी हो चुकी थी। वह बोल पड़ी-`तुम बहुत दबंग बनते हो न। करो और गुंडई। मैं भी देखती हूँ आखिर तुम मुझे कब तक रोकोगे…’ और जाकर घर का बिखरा हुआ सामान समेटने में लग गई।

परिचय-शिवनाथ सिंह की जन्म तारीख १० जनवरी १९४७ एवं जन्म स्थान धामपुर(बिजनौर,उत्तर प्रदेश )है। प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री सिंह की शिक्षा सिविल इंजीनियरिंग है और विद्युत विभाग से २००५ में अधिशाषी अभियन्ता पद से सेवानिवृत्त हैं। रुचि-साहित्य लेखन,कला एवं अध्यात्म में है। इनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह(२०१४) सहित लेख,लघुकथा एवं कहानी संग्रह(२०१८) प्रमुख है। मुक्तक संग्रह प्रकाशन प्रक्रिया में है। रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं एवं पत्रों में विविध साहित्य के रुप में प्रकाशित हैं। लेखनी की वजह से विभिन्न संस्थाओं से अनेक सम्मान-पत्र एवं प्रशस्ति-पत्र प्राप्त हैं।

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