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खुशियाँ

भुवनेश दशोत्तर,
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बाज़ार के पास,
मुझे खुश करने का सारा इंतजाम था
सारा ज़रूरी सामान था,
वहाँ मादकता,मदहोशी,
रंगीन नज़ारे सब बिक रहे थेl
मैं खुशियाँ खरीदता रहा,
लेकिन
खुशियाँ कपूर-सी उड़ती रहीं,
मन को और रीता करती रहींl

मैं बाज़ार के चक्कर लगा रहा था,
भूल गया था कि
बाज़ार के पास सब-कुछ है,
लेकिन उसके पास
खुशियाँ बाँटता,
न तो रंग-बिरंगा आकाश है
न चलते-फिरते बादल,
न क्षितिज से निकलता सूरज…
न तारों संग मुस्काता,
इठलाता चाँदl
न पर्वतों की उत्तुंग श्रेणियाँ,
न झर-झर झरते झरने
न ही नदिया की कल-कल,
न घुमड़ता सागर है…
न उन्मुक्त उड़ते पंछीl

मैं यह भी भूल गया था कि,
अनमोल खुशियाँ तो
बच्चे की दिव्य मुस्कान में हैं,
माँ की
मधुर लोरी और दुलार में हैl
प्रिय के उमड़ते,
असीम प्यार में है
रिश्तों के अपार स्नेह,
और
किसी के आँसू पोंछने पर मिली
मुस्कान में हैl

कैसे कहूँ,
सच तो यही था कि
खुशियों का पता जेब में थाl
और मैं…
बाज़ार में ढूँढ रहा थाll

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